‘Mujhmein Kuchh Nasha Sa Behta Hai’, a poem by Bhupendra Singh Khidia

बहता है, हवा सा बहता है
मुझमें कुछ नशा सा बहता है

अंदर है समंदर अंत तलक
दरिया तो ज़रा सा बहता है

भटकी-भटकी आँखों में तो
सपना भी बड़ा सा बहता है

साँसें भी सुनायी दे जातीं
अब मौन नवा सा बहता है

दुःख की बीमारी मरती है
यूँ मौज दवा सा बहता है

छम-छम मस्ती लो मुझसे
अंदर ही चौमासा बहता है

अहं ब्रम्हास्मि! कौन खुदा?
ये शोर हवा सा बहता है

जब से अपने पर मुग्ध हुए
तब से, झरना सा बहता है

रसना पर है आंनद ‘समय’
रस भी जमना सा बहता है

भूपेन्द्र सिँह खिड़िया
Spoken word artist, Script writer & Lyricist known for Naari Aao Bolo, Makkhi jaisa Aadmi, waqt badalta hai. Instagram - @bhupendrasinghkhida Facebook - Bhupendra singh Khidia Fb page :- @bhupendrasinghkhidia