‘Mujhse Poochho’, a nazm by Tasneef Haidar
मुझसे पूछो
मेरी सारी उम्र
दूसरे लोगों की तक़लीद में गुज़री है
हुक्म की इक गहरी तामील में गुज़री है
एक लकीर को गाढ़ा करने की तामील में गुज़री है
एक फ़रेब की ग़ैर-ज़रूरी सी तश्कील में गुज़री है
मैंने जिसको क़त्ल किया है
वो दुश्मन तो पैदा होने से पहले ही
मेरे बाप ने चुन लिया था,
मैंने जिसको गाली दी है
उस तहज़ीब का ग़ासिब और कमीना होना साबित है
ये तो मैंने माँ के पेट में सुन लिया था
ये जो मेरे माथे पर
पट्टी बंधी हुई है ग़ुलामी की
वो मुझको पैदा होने से पहले ही पहनायी गयी थी
ये जो चीख़ किसी की सुनकर ख़ुश होता हूँ
ये जो किसी की मौत पे मेरा दिल हँसता है
मुझको इसकी तरबीयत
बचपन से ही करवायी गयी थी
मेरी नज़र में इंसानों के ख़ून की क़ीमत बस इतनी है
जितनी मेरे पैदा होने से पहले
मेरे माँ-बाप के पैदा होने से पहले
उनके माँ-बाप के पैदा होने से पहले
सदियों और ज़मानों पहले
उस इंसान ने तय कर दी थी
जिस पर कोई हलकी-सी तनक़ीद करे तो
मैं दुनिया को आग लगा दूँ
जाँ ले लूँ या जान गँवा दूँ!
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