जब हमला हुआ तो महल्ले में अकल्लीयत के कुछ लोग कत्ल हो गए। जो बाकी बचे, जानें बचाकर भाग निकले- एक आदमी और उसकी बीवी अलबत्ता अपने घर के तहखाने में छुप गए।
दो दिन और दो रातें पनाह याफ्ता मियाँ-बीवी ने हमलाआवरों की मुतवक्के-आमद में गुजार दीं, मगर कोई न आया।
दो दिन और गुजर गए। मौत का डर कम होने लगा। भूख और प्यास ने ज्यादा सताना शुरू किया।
चार दिन और बीत गए। मियाँ-बीवी को ज़िन्दगी और मौत से कोई दिलचस्पी न रही। दोनों जाए पनाह से बाहर निकल आए।
खाविंद ने बड़ी नहीफ आवाज में लोगों को अपनी तरफ मुतवज्जेह किया और कहा- “हम दोनों अपना आप तुम्हारे हवाले करते हैं… हमें मार डालो।”
जिनको मुतवज्जेह किया गया था, वह सोच में पड़ गए- “हमारे धरम में तो जीव-हत्या पाप है..।”
उन्होंने आपस में मशवरा किया और मियाँ-बीवी को मुनासिब कार्रवाई के लिए दूसरे महुल्ले के आदमियों के सिपुर्द कर दिया।