मुराकामी में ऐसा क्या है?

हारुकी मुराकामी जापान के मशहूर लेखक हैं, जिनके नॉवेल और कहानियां पढ़ने वालों का दुनिया भर में एक बहुत बड़ा दायरा है। यह नाम किसी त’आरुफ़ का मुहताज नहीं है। कहानियों की दुनिया का सशक्त हस्ताक्षर यह नाम ज़ियादा चर्चा में हर बार तब आता है जब साहित्य के नोबल की दौड़ में होते हुए भी, उस पुरस्कार का असली दावेदार होते हुए भी वह इस रेस से (एक ऐसी रेस से जो उसके प्रसंशकों के लिए खुद उस से ज़्यादा मायने रखती है) चूक जाता है। बस यही बात दुनिया को दो धड़ों में बांट देती है- एक जो मुराकामी के लिए खड़े हैं, दूसरा जो उनके सामने हैं। ख़ुद मुराकामी इन सब से ऊपर उठ चुके हैं और इन सब से बेपरवाह अपना बेहतरीन काम दुनिया के सामने रख रहे हैं। जापान के मुराकामी इस वक़्त अमेरिका में रह रहे हैं।

मैंने और पूजा भाटिया ने इन दस इमेल्स में ख़ास तौर पर उनकी कहानियों पर बात की है और इन में भी विशेष तौर पर वो कहानियां शामिल हैं, जो उनके कहानी संग्रह ‘मेन विदाउट विमेन’ में शामिल हैं। ये सिलसिला हमने इसलिए शुरू किया है क्यूंकि हमें महसूस होता है कि किताबों को समझने के लिए आलोचकों या लेखकों के बजाये अपने दोस्तों की मदद लेना भी बाज़ दफ़ा ज़्यादा फ़ायदे-मंद हो सकता है। मुमकिन है कि हमारी बहुत सी बातों से आप इत्तिफ़ाक़ न करें, मगर हमने इस सिलसिले में पहल की है, हो सकता है आगे और भी दोस्त शामिल हों और किताबों को जानने और समझने का ये कारवाँ और बहुत सी मंज़िलों की सैर करे। – तसनीफ़ हैदर


तसनीफ़:

पूजा! आदाब!

पहली बार आपको किसी कहानीकार के बारे में ये मेल लिख रहा हूँ। जापान के बारे में आपका ख़ूबसूरत लेख भी पढ़ा और उस यात्रा की बहुत सी बातें फ़ोन पर आपकी ज़बानी भी सुनीं। सच में, ये आपकी ज़िन्दगी का एक बेहतरीन अनुभव था और अब तो हम भी आपके शब्दों के द्वारा उसमें शरीक हो गये हैं। आपको याद होगा, जब आपने मुझे अपने जापान जाने की सूचना दी थी, तभी मैंने वहां के एक प्रसिद्ध लेखक हारुकी मुराकामी का ज़िक्र किया था। मैंने उनकी कई कहानियां पढ़ी हैं और जानता हूँ कि आप भी उनकी आशिक़ रही हैं। मुराकामी कहानी के हुनर में ताक़ हैं, उनके जैसी कोई दूसरी मिसाल बहुत सी दूसरी ज़बानों की कहानियों में भी नहीं मिलती। हालांकि मैं जापान के याज़ू नारी कावा बाता (पहले जापानी नोबल प्राइज़ विजेता) का नावेल ‘पहाड़ की आवाज़’ पढ़ चुका हूँ। कुछ दूसरी जापानी कहानियां भी पढ़ी हैं और इस बार नोबल प्राइज़ पाने वाले, अमरीका में रह रहे जापानी राइटर काज़ुओ इशिगुरो की एक किताब आधे मन से पूरी की है। ऐसा नहीं कि मैं उन्हें अच्छा नहीं समझता या दूसरी ज़बानों के लिखने वाले मुझे कम पसंद हैं, बात ये है कि मुराकामी अपनी कहानियों के ज़रिये बहुत सी नई दुनियाओं में ले जाते हैं, फिर भी ऐसा लगता है कि उनके तराशे गए किरदार हमारी अपनी ज़ात से निकल कर एक जादुई आईने में चलते फिरते या कहानी जीते हुए नज़र आ रहे हैं। उनकी कहानी ‘Yesterday’ का किटारु नामक लड़का, ‘बर्थडे गर्ल’ की बे-नाम लड़की, ‘Men without women’ में ‘M’ को तलाश करने वाला वो आदमी या ‘बेकरी अटैक’ के पति-पत्नी, सब कहीं न कहीं मेरी ही ज़ात का हिस्सा हैं। मैं ही तो कभी किटारु की तरह किसी बेकार ‘बोली’ को सीखने में अपना सारा दिमाग़ ख़र्च कर देता हूँ (क्यूंकि उस में मेरा मन लगता है) और एक आम सा इंट्रेंस इग्ज़ाम पास नहीं करता। जिससे मोहब्बत हो जाए उसे छूते हुए भी डरता हूँ (चाहे ये बात उसे ही क्यों न बुरी लगे), बर्थडे गर्ल की तरह मुझे भी तो अपनी विश के पूरे होने का इंतज़ार है, जिसके लिए मैंने सिवाय समय के और कुछ नहीं माँगा है, मैं ही तो अपनी खोई हुई M को तलाश कर रहा हूँ। मुझे भी तो किसी की दी हुई बद-दुआ ने पेट भरने के लिए लूट मार के काम पर लगा रक्खा है। इन कहानियों पर, इसके अलावा दूसरी कहानियों पर भी मैं आपसे विस्तार में बात करना चाहता हूँ और जब आपका जवाब मिलेगा तो ज़रूर आगे और भी बहुत सी बातें होंगी और शायद इन बातों में हम दोनों यह खोज सकें कि मुराकामी में आख़िर ऐसी क्या बात है, जो उसने हम दोनों के साथ लाखों लोगों को अपना घायल किया हुआ है। वो बात, जो उसे हर साल नोबल पाने वाले उम्मीदवार नामों की सफ़ में ला खड़ा करती है। आख़िर में आपको बताता चलूँ कि आपने जापान से एक बूढ़े दुकानदार की जो तस्वीर ‘मुराकामी’ का कैप्शन लगा कर भेजी थी, मैंने उसे भी बहुत संभाल कर रखा है।

अब चलता हूँ, आपके मेल का इंतज़ार रहेगा।

आपका

तसनीफ़ हैदर


पूजा:

आदाब तसनीफ़

सच पढ़ने का शौक़ कमाल का शौक़ है, और फिर ये दो लोगों को एक सा हो तो उनकी दोस्ती की उम्र बेहद लंबी होना तय है। आपसे मुराकामी के बारे में पहले पहल जानना और फिर उन्हें ढूंढ कर पढ़ना। मुझे याद है मैंने मुराकामी की पहली किताब ‘Men Without Women’ लेते ही उसकी तस्वीर आपको भेजी थी ये बताते हुए की मैंने मुराकामी की दुनिया को जानने का अपना सफ़र शुरुअ कर दिया है। वो खुशी बिल्कुल ऐसी थी जैसी किसी बच्चे को किसी अनजान दुनिया की सैर से पहले होती है। आप सहीह थे, मुराकामी न सिर्फ़ अपनी दुनिया में ले जाते हैं बल्कि आपको उस दुनिया का हिस्सा तक बना लेते हैं। आज आपसे अपने पसंदीदा लेखक के बारे में बात करके मुझे बेहद खुशी हो रही है।

आपने मेल में जिन कहानियों का ज़िक्र किया तकरीबन सभी कहानियाँ मैं देख चुकी हूँ। आप सोच रहे होंगे कहानी तो सुनी या पढ़ी जाती है, पर ये सच है कि मुराकामी की कहानियाँ पढ़ते वक्त वो कब एक चलती फिरती दुनिया में तब्दील हो जाती हैं आपको पता ही नहीं चलता और आप उन्हें पढ़ने की बजाय देखने लगे जाते हैं। और एक पाठक के तौर पर किसी लेखक का अपनी दुनिया को हूबहू एक फ़िल्म की तरह दिखला देने का ये हुनर मुझे ज़ाती तौर पर बहुत मुतासिर करता है, जिससे न केवल मैं उस कहानी को देख पाती हूँ , महसूस कर पाती हूँ, बल्कि बहुत हद तक जी भी पाती हूँ।

और मज़े की बात ये है कि मुराकामी को सिर्फ़ यही सिफ़त हासिल नहीं है बल्कि और भी कई ख़ास बातें हैं जो आपके सवाल “मुराकामी को क्यों पढ़ा जाए? “का शायद बहुत हद तक जवाब दे दे।

आपने जिन कहानियों और उनके किरदारों के ज़िक्र अपनी मेल में किया है वाक़ई वो कमोबेश हम सभी में मौजूद हैं और ये मुराकामी की सफलता की एक कड़ी भी है कि उनकी दुनिया के लोग हमारे तुम्हारे जैसे ही हैं जिनसे हम पल भर में खुद को जोड़ लेते हैं। आपने “कितारु” की बात की वो उसका गानों के बोल बदल कर उसी लै पर गुनगुनाना याद है? ये काम मैं अपने कॉलेज के दिनों से करती आ रही हूं। (अभी भी जारी है) यहां मैं कितारु से खुद को जुड़ा महसूस करती हूँ। वहीं अपनी प्रेमिका के साथ अपने सबसे अच्छे दोस्त को ‘डेट’ पर जाने की सलाह देना एकबारगी मुझे हैरान करता है तो अपने दोस्त और अपनी प्रेमिका पर एक सा भरोसा उसकी सादगी और भोलेपन का क़ायल भी कर जाता है।

“Birthday Girl” ने तो हर पढ़ने वाले को कई सवाल दिए जिन्हें कहानी के बाद वो खुद के सामने पाता है। और वो एक सवाल “कि गर मुझे कुछ मांगना होता तो मैं क्या माँगती? मैंने जितनी बार ये सवाल खुद से पूछा, सच कहूं हर बार एक नई मांग थी मेरी।

एक और बात थी इस कहानी के सभी किरदार बेनाम हैं यानी बिना किसी के नाम का ज़िक्र हुए भी पाठक एक किरदार विशेष को आसानी से पहचान पाता है। मुराकामी जो प्रतीकात्मक तरीक़ा अपनाते हैं अपनी कहानियों में वो अपना अलग ही महत्व रखता है । जैसे इसी कहानी में मुख्य किरदार से जब कहा जाता है कि उसकी गाड़ी के बम्पर पर तो डेंट लगे हैं, उस पर किरदार का ये जवाब कि बम्पर तो डेंट लगने के लिए ही होते हैं, यानी बम्पर है तो डेंट तो लगेगा ही। एकबारगी ये एक स्टेटमेंट लगता है सादा सा, पर क्या ऐसा नहीं लगता जैसे कार के बम्पर की आड़ में मुराकामी ज़िन्दगी के बारे में बात कर रहे हैं? जैसे कहना चाह रहे हों कि ज़िन्दगी है तो उतार चढ़ाव भी होंगे ही, उसे जैसी है वैसी ही अपना लो।

आपको क्या लगता है, यह जानने के लिए आपकी मेल का इंतज़ार रहेगा।

पूजा


तसनीफ़:

ये मेल भेजने में देर हुई है, कारण इसका ये है कि मैं ज़ुकाम से बुरी तरह जूझ रहा हूँ और अपना नज़ला किसी पर गिरा भी नहीं सकता। ख़ैर, ये तो मज़ाक़ की बात थी, मुराकामी की कहानियों के बारे में आपकी कही गई बेश्तर बातों से मैं सहमत हूँ। मैं इस मेल में ख़ास तौर पर शहरज़ाद पर बात करना चाहता हूँ। ये तो हम सब ही जानते हैं के अल्फ़ लैला में शहरज़ाद की अहमियत क्या है, वो अपनी बोल्डनेस, अक़्लमंदी और कहानियों का एक समुन्दर होने के सबब पूरी दुनिया में कामयाब और मुकम्मल औरत का इक इस्तिआरा बन गयी है। कामयाब और मुकम्मल तो फिर भी दो क्लीशे शब्द हैं, औरत लेकिन ज़्यादा मुनासिब है। मैं आपको बता दूँ कि मुझे लड़के या मर्द और लड़की या औरत में फ़र्क़ करना ज़्यादा पसंद नहीं। बहर-हाल, इस जापानी लेखक का तराशा गया ये किरदार भी एक औरत के ज़ाती अनुभवों को किस प्रकार हमारे सामने लाता है, कैसे उसके मन में जल रही प्रेम की अजीब सी चिंगारी को हवा मिलती है और किस तरह वो अपने माशूक़ के घर में घुस कर कभी उसकी पेंसिल तो कभी उसका टी-शर्ट भी निकाल लाती है! ऐसा एक तजरबा मेरा भी रहा है, एक लड़की के घर में मुझे किसी कारण अकेले रुकना पड़ा था। मैंने मौक़ा मिलते ही उसकी कपड़ों से भरी अलमारी खोली और सामने लटक रहे उसके तीन चार ब्रेज़ियर्स में से एक को उठा लिया, और न जाने कब तक उन्हें सूंघता रहा। फिर पता नहीं क्या ख़याल आया और मैं उसकी वाशिंग मशीन की ओर दौड़ा, वहां से मैंने उसकी एक मैली ब्रा उठाई और उसे बहुत देर तक सूंघा किया। पसीने की वो महक, किसी इंसानी लम्स के खुशगवार अहसास से कम नहीं थी। ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे कोई जलती हुई कलाई मेरे जिस्म की पिघलती हुई शिरयानों पर मौजूद हो। मगर, वो वक़्त जैसे जैसे बीता, वो महक, काफ़ूर की महक की तरह उड़ गई और लम्स के गुंबदों में उस हरारत का एक कबूतर भी बैठा न रहा। आज सोचता हूँ तो इस बात पर हंसी आती है, ठीक शहरज़ाद की तरह, क्यूंकि अब तो उस लड़की से मिलने का मन भी नहीं होता। लोग कहते हैं कि प्रेम की कोई उम्र नहीं होती, हवस की भी नहीं होती होगी, मगर छोड़ जाने या नज़र-अंदाज़ कर दिए जाने वाले प्रेम और उससे जुड़ी हवस की एक उम्र ज़रूर होती है। इंसान का यूँ तो कोई भरोसा नहीं, जैसे कि ‘ड्राइव माय कार’ के कार मालिक का अपनी पत्नी के आशिक़ से बदला लेने का तरीक़ा सुन कर हम चौंकते हैं। लेकिन उस कार मालिक और शहरज़ाद के दरमियान एक छोटा सा अंतर है, वो ये है कि कार-मालिक जैसे मामलात एक्सेप्शनल हैं जबकि शहरज़ाद की ज़िन्दगी से जुड़ा मामला यूनिवर्सल मालूम होता है। किसी ने कहा था कि प्रेम तो सिर्फ़ दो तरफ़ा ही हो सकता है, एक तरफ़ा प्रेम मिथ है, इंसान की ऐसी ही कल्पना, जैसी कि भगवान या ख़ुदा हैं। आगे आपकी बारी।

तसनीफ़ हैदर


पूजा:

मैं आपकी मेल का इंतजार ही कर रही थी। मुराकामी के लेखन के कुछ पहलुओं पर हमारी बात हुई। कुछ कहानियों के सिलसिले में हुई इस बातचीत में मुझे आपका मुराकामी की कहानियों को देखने का नज़रिया भी जानने को मिला, अच्छा लगा। यूं उनकी हर कहानी कुछ नयापन समेटे है आपने शहरज़ाद का नाम सुझाया, शुक्रिया। मैं इस पर बात करना भी चाहती थी। ये कहानी मुझे बेहद पसंद आई। अल्फ़ लैला से परिचित होने के कारण इस कहानी में रुझान तो बढ़ा पर इसे बरकरार रखा किरदारों की कसावट ने। मुराकामी ने एक औरत के ज़ाती अनुभव को अपनी कलम से जिस तरह तराशा है वो क़ाबिले तारीफ़ है। एक औरत का यह बयान कि अपनी किशोरवय में किस तरह वो एक लड़के के घर (जिस से वो बेहद प्यार करती है और लड़का इस बात से पूरी तरह अनजान है) चोरी-छिपे घुस जाती है। इस बात ने मुझे रोमांचित किया क्यों कि मुझे लगता है कि उम्र के उस मोड़ पर जब आपके बदन में होने वाले रासायनिक लोचे (इसे बदलाव भी पढ़ा जा सकता है) अपने चरम पर होते हैं इस तरह की हरकत की जा सकती है, कम अज़ कम खायालों में तो कईयों ने ऐसा सोचा होता है।

इन सबके इतर जिस बात ने मुझे प्रभावित किया वो थी जब लड़की, लड़के के घर में चुपके से घुसने के बाद लौटने से पहले लड़के की कोई चीज़ निशानी के तौर पर ले जाना चाहती है, वो उसकी पेंसिल चुनती है। और वो इसके बदले में अपना कुछ सामान रख छोड़ती है क्योंकि सिर्फ़ उसका कुछ उठा लेना चोरी कहलायेगा। और इस तरह से तब जबकि कोई भी उसे देख नहीं रहा वो अपने आप से ईमानदार बनी रहती है। कितनी अद्भुत सी बात है न??

इसी तरह लड़की का अगली बार में लड़के की पहनी हुई शर्ट को सूंघना, उसके बिस्तर पर लेटना, उसकी कुर्सी पर बैठना या उसकी किताबों को छू कर देखना, इन सभी के ज़रिए वो उस लड़के को महसूस करना चाहती है और करती भी है। इस बात से हर वो शख़्स, जो इस उम्र से गुज़रा है अपने आप को जोड़ कर देख सकता है। आपने अपने वाक़ये को जिस साफ़गोई से कहा है उसे मैं सुबूत के तौर पर ले रही हूँ।

कहानी में कई जगहों पर मुराकामी का बारीक़ observation साफ दिखाई पड़ता है फिर चाहे वो किसी घर, स्कूल को दिखाना हो या फिर किसी किरदार को। आपके सामने पूरा ख़ाका हाज़िर होता है। और जो सबसे ज़्यादा हैरान करता है वो है इस कहानी का अंत… एकदम से ख़त्म हुई कहानी आपको हक्का बक्का छोड़ देती है, इस अहसास के साथ कि आगे क्या होता??? शायद यही चीज़ें आपका लगाव कहानी के साथ बनाये रखती हैं।

इसी तरह गर हम ‘Drive My Car’ की बात करें तो कई हैरान करने वाली बातें वहां भी मुकम्मल तरीक़े से मौजूद है। अगली मेल में इसे भी शामिल करूंगी।

मुराकामी ने ‘औरत क्या सोचती है, कैसे सोचती है’ इस मुद्दे पर कई जगह बखूबी लिखा है पर कुछ यूं जैसे वो भी जानना ही चाह रहे हैं, और यक़ीन से कुछ नहीं कह रहे। यहीं पर जाने क्यों यहां मुझे ‘मिलान कुंदेरा’ उनसे बाज़ी मारते नज़र आते हैं। उम्मीद है ‘कुंदेरा’ पर कभी तफ़सील से बातें होंगी। अभी के लिए इतना ही, अब गेंद आपके पाले में है…..

आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा।

पूजा


तसनीफ़:

पूजा!

शाम की चाय कैसी रही? मैंने तो अभी-अभी बनाई और दूध कम हो गया, पानी ज़्यादा। पत्ती अभी अपना ख़ास असर छोड़ नहीं पाई थी कि गैस से पतीली उतार ली। नतीजा ये हुआ कि पीते वक़्त ऐसा अहसास हो रहा था, जैसा हल्का गर्म मीठा पानी पी रहा हूँ, जिसकी रंगत मेरे करतूतों की तरह मट-मैली हो गयी है। अच्छा, अब ज़रा पलौथी मार कर आपसे हारुकी मुराकामी की उस कहानी पर बात की जाए, जिसने मेरे दिल को बड़ी मज़बूती से अपनी गिरफ़्त में लिया। एक तो शहरज़ाद पर बात करते समय ये बताना भूल ही गया कि मैं सोच रहा था, वो लड़की कितनी ख़ुश-क़िस्मत थी कि चोरी का शक होने की वजह से एक रोज़ मकान मालकिन ने डोर-मैट के नीचे से चाबी हटा ली थी और वो मोहब्बत के चंगुल से निकल गयी, काश हमारे पास भी कोई ऐसा मेहरबान होता तो हम भी मोहब्बत के मासूम लम्स चखने के लिए मुद्दतों तक एक ही घर की ख़ाक न छानते। ख़ैर, अब बात करते हैं ‘सैमसा इन लव’ नामी कहानी की। मुझे लगता है कि मुराकामी पर जिन बड़े लिखने वालों ने ज़्यादा असर डाला है उन में फ्रांज़ काफ़्का बहुत गहराई तक शामिल है। उसकी दो तीन वजहें हैं, पहली तो ये कि इसी कहानी को देखिये जो कि एक तरह से ‘मेटरमोरफोर्सेज़’ का एक बढ़ा हुआ हिस्सा है, हर प्रकार से। दूसरे, मुराकामी ने जिन पांच किताबों को पढ़ने की सलाह हर एक को दी है, उन में काफ़्का का एक अधूरा नावेल ‘दी कैसल’ भी शामिल है। जहाँ तक ‘सैमसा इन लव’ का तअल्लुक़ है, ये कहानी ‘मेटामोरफोर्सेज़’ का हिस्सा मालूम होते हुए भी उससे बिलकुल अलग कहानी है। फ़्रांज़ काफ़्का इंसान के अस्तित्व से जितना मायूस है और आम ज़िन्दगी में अलग ढंग से सोचने वालों या अलग प्रकार से जीने वालों या अलग दिखने वालों से नफ़रत का जो रुख़ पेश करता है वो बड़ा भयानक है, मगर मुराकामी ने इसी भयावह दृश्य को उम्मीद और प्रेम से कैसा भर दिया है, उसने इस पहलू पर ग़ौर कर के देखा है कि यदि सैमसा के जीवन में प्रेमरस नामी कोई चीज़ होती तो जीवन और दुनिया को देखने का उसका नज़रिया क्या इतना ही नकारात्मक होता? क्या तब वो अपने जूतों के तस्मे बांधते हुए, इस खतरनाक और बदसूरत, लहू उछालती हुई दुनिया को समझने और जानने नहीं निकल पड़ता, सिर्फ़ मोहब्बत के जज़्बे से प्रेरित हो कर?

आपने कुंदेरा वाली बात कह कर मुझे कुछ सोचने पर मजबूर किया है, अलबत्ता उस पर मैं किसी और समय बात करूँगा जब हम उसी के किसी नावेल को डिसकस कर रहे होंगे।

अब चलता हूँ। अच्छी चाय बना कर पियूँगा।


पूजा:

आदाब तसनीफ़

भई चाय तो हम भी पीएंगे और साथ ही मुराकामी की और कहानियों पर बात भी करेंगे।

उस से पहले ये बता दूं कि शहरज़ाद कहानी में मकान मालकिन द्वारा चाबी की जगह बदल देने की शुक्रगुज़ार तो मैं भी हूँ, वरना कहानी का अंत कुछ और होता और ये इस तौर पर हमारे सामने न आती। अब रही आपकी बात तो चाहे आप एक ही इश्क़ में ताउम्र मुब्तला रहें या ताउम्र अलग-अलग इश्क़ की गिरफ़्त में आते रहें ,ज़ुरूरी बात है इश्क़ में रहना।

और मुझे मुराकामी की कहानियों को पढ़ कर एक बात तो यक़ीनन मालूम होती है कि मुराकामी भी इश्क़ के मुरीद हैं। देखिए न, उनकी हर कहानी का मरकज़ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इश्क़ ही दिखाई पड़ता है। आप ‘सेम्सा इन लव’ को ही देख लीजिए, इस कहानी को जो कि मूलतः काफ़्का की कहानी मेटामोरफॉसिस से प्रेरित है। इसे लिखने के पीछे मुराकामी का काफ़्का के लेखन के इश्क़ में होना है, यही बात आप मुराकामी के नॉवल ‘काफ्का ऑन द शोर’ में भी देख सकते हैं और मुराकामी के इस कथन में भी कि काफ्का का अधूरा नॉवल ‘द केसल’ हर आदमी को ज़ुरूर पढ़ना चाहिए। ये तो हुई मुराकामी के काफ़्का से मुतासिर होने की बात, अब आती हूँ सेम्सा इन लव पर… अव्वल तो ये काफ्का की कहानी मेटामोरफॉसिस को कतई बढ़ाती हुई नहीं है बल्कि उसके बिल्कुल उलट इक नये नज़रिए को पेश करती है जिसमें एक बीटल या एक कीड़ा अचानक एक सुबह एक आदमी में तब्दील हो जाता है। और सबसे पहले उसकी मुलाक़ात एक कुबड़ी लड़की से होती है ।

कीड़े का ज़हन, इंसानी जिस्म की जद्दोजहद और इंसानी दुनिया से जुड़े तमाम सवालात लिए ग्रेगर सेम्सा उस लड़की की तरफ झुकाव महसूस करता है।और यहां तक कि उसके प्रेम में वो इंसान बना रहने को भी स्वीकार कर लेता है। जहां काफ्का का मुख्य किरदार मायूस है और उसके परिवार वाले तक उस से बेज़ार हैं वहीं मुराकामी का किरदार प्यार के लिए, प्यार को जानने के लिए एक अबूझ दुनिया से निभाने और उसे समझने को तैयार मालूम होता है।

अब आप ‘An Independent Organ’ कहानी को ही ले लें। एक प्लास्टिक सर्जन के इर्द गिर्द घूमती ये कहानी भी मुहब्बत पर पहुंच कर ही मोड़ लेती है। इस के बारे में आपके क्या विचार हैं।

चलिए तो मिलते हैं चाय की अगली प्याली के साथ..


तसनीफ़:

‘टोकाई’ का जो ज़िक्र किया तूने हम-नशीं
इक तीर मेरे सीने पे मारा कि हाय हाय

ग़ालिब साहब से माफ़ी मांगते हुए आपको बताता चलूँ कि पिछले मेल में आपने इस कहानी का ज़िक्र किया और इत्तेफ़ाक़ से मैंने इसे पढ़ा नहीं था। और जब पढ़ा तो अपनी नादानी और मुराकामी की एक और शानदार कहानी पर साथ-साथ हैरान हुआ। मोहब्बत भी अजीब जज़्बा है। टोकाई जैसे ज़िंदा-दिल, हँसते-बस्ते इंसान को इसने कैसा उजाड़ के रख दिया। वो जो बात कही गयी कि मोहब्बत अगर बर्बाद करे तो मोहब्बत नहीं है, उसकी हक़ीक़त ये कहानी खोलती है। मोहब्बत का सारा हासिल हुसूल एक गहरी उदासी के अलावा और कुछ भी नहीं है। लोग हैरान होते हैं कि ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत इंसान कभी-कभी दिल में वो चिंगारी पैदा नहीं कर पाते, जो कोई आम सी शक्ल ओ सूरत कर देती है। दूर से देखने पर इस सेहरा में भागने दौड़ने वाले दीवाने या मजनूँ ही नज़र आते हैं, जिन्हें न अपनी प्यास का होश होता है न भूख का। मगर इंसान ख़ुद अगर इस जाल में फंस जाए तो उससे कैसी-कैसी अजीब हरकतें ये जज़्बा करवा लेता है, उसका कोई हिसाब नहीं। मुराकामी ने लिखा है कि लोगों और जगहों के नाम ज़रूर बदले गए हैं, कुछ जगहों पर फ़िक्शन के मसाले से हलकी फुल्की दरारों को भरा भी गया है मगर ये अफ़साना हक़ीक़त से दूर नहीं है। ‘इंडिपेंडेंट ऑर्गन’ नामी इस कहानी में टोकाई की ज़िन्दगी, उसकी मोहब्बत और उसका अंजाम, असल में ज़िन्दगी के हाथों इंसान को सौंपी जाने वाली ऐसी नायाब ट्रेजेडी है जो हर किसी के हिस्से में नहीं आती। जिससे इंसान को मोहब्बत हो जाए, उसका किरदार, रंग, नस्ल, मज़हब या फिर अच्छी बुरी आदतें, हरकतें कुछ भी मानी नहीं रखतीं। टोकाई को सूत्रधार के हिसाब से लड़की के हाथों ठगे जाने का सदमा लगा था, जबकि मुझे लगता है कि सदमा तो उस अहसास ने टोकाई के दिल में तभी से जन्म ले लिया था, जब वो उस लड़की से मिला और उसकी मोहब्बत में गिरफ़्तार हुआ था, और इस बात से डरता था कि कहीं वो लड़की उसकी निगाहों से हमेशा के लिए ओझल न हो जाए। आख़िर में औरतों के झूठ बोलने के तअल्लुक़ से मुराकामी ने जो कुछ इस कहानी में लिखा है, वो उसके और कुंदेरा के बीच औरतों को समझ पाने वाली हमारी बहस की शुरुआत हो सकती है। कितना अच्छा हो अगर आप इस पर एक आर्टिकल लिखें।

अब मैं चलता हूँ, कल से दिल्ली के आसमान पर बादल हिलकौरे ले रहे हैं, नवी मुंबई का मौसम कैसा है। आप ख़ुश-क़िस्मत हैं कि समुन्दर का आसानी से दीदार कर सकती हैं, एक हम हैं जो उसकी आग़ोश से बहुत दूर झाग उड़ाती यमुना के क़रीब आबाद हैं, जिसे तरह-तरह के वादों के बा-वजूद गन्दगी से निजात मिलती नज़र नहीं आती और जो रोज़ ब रोज़ अपना क़द घटाती जा रही है।

तसनीफ़ हैदर


पूजा:

आदाब तसनीफ़

मौसम का हाल मुम्बई में कुछ यूं है कि सूरज चढ़ आने पर सब्जियों को पानी के छींटे मार-मार कर होश में लाने की कवायद होती है, और इंसान अपने पसीने से तर शरीर को दुपट्टे या फ़ाइल से हवा कर के पर्सनल AC का लुत्फ लेता दिखाई देता है। यानी कमोबेश दिल्ली जैसी गर्मी यहां भी शुरू हो चुकी है। रहा समंदर के किनारे होने का सुख तो हाँ ये तो है। एक नज़र भर के हिलोरे लेते दरिया को देखते ही कलेजे को जो ठंड पड़ जाती है उसका कोई बदल नहीं।

अब मुराकामी से पहले आपकी बात पर अपनी राय देती हूँ वो ये कि, तसनीफ़ मियाँ मुहब्बत में होना ही मुहब्बत का हासिल हुसूल है। और ये जो अपेक्षाएं हम मुहब्बत जैसे ख़ालिस जज़्बे के साथ लगा लेते हैं न यही.. यही तकलीफ़ की अस्ल वजह बन जाती है। वरना उनकी सोचिए जो इस जज़्बे के पास से भी नहीं गुज़रने पाते और गुज़र जाते हैं। तो भई मेरा तो ये मानना है कि मुहब्बत नेमत है और उसमें होना एक मोजज़ा ।अब ये आप पर है कि आप उस मोजज़े का लुत्फ उठाएं या क्या खोया क्या पाया का हिसाब लगाएं।

यही तो डॉ. टोकाई के साथ भी हुआ। टोकाई का ये किरदार मुझे मुराकामी के सभी किरदारों में अलग या यूं कहो अजीब सा लगा। अव्वल तो इस किरदार में दूसरे किरदारों की तरह कोई पेच, कोई लत, या सनक नहीं। उसे पता है उसे ज़िन्दगी से क्या चाहिए और उसे कैसे अपनी तयशुदा ज़िन्दगी बितानी है। मोड़ तब आता है जब कई हसीन साथ पीछे छोड़ने के बाद एक रोज़ उसे प्यार हो जाता है। यहां तक भी ठीक है पर दिक्कत तब होती है जब उस प्यार से उसे उम्मीदें लग जाती है। अपने में आये इस बदलाव पर शुरुआती दौर में वो हैरान होता है क्यों कि ये तो उसकी ज़िन्दगी की विशलिस्ट में कहीं था ही नहीं। आख़िरकार खुद को और उस औरत को समझने की नाकाम कोशिश के चलते ज़िन्दगी को बेहद अबूझ तरीक़े से अलविदा कह देता है। ऐसा मालूम होता है मानो मुराकामी की दुनिया में खुशी सिर्फ एक धोखा है और हर कोई उसे पाने की धुन में है।

यहां डॉ. टोकाई का ये कहना कि औरत के पास एक ऐसा independent organ होता है जिसके चलते वो आसानी से बिना किसी गिल्ट के झूठ बोल लेती हैं, एक आरोप सा महसूस होता है। जो औरत को समझने की नाकाम कोशिश के चलते बस लगा दिया गया हो।मुराकामी अपने किरदार की उम्र के साथ-साथ तजुर्बेकार होते हैं और उन्ही के ज़रिए अपना फिक्शनल वर्ल्ड हमें दिखाते हैं। यही बात उन्हें औरों से अलग बनाती है। ‘कीनो’ तो आपने पढ़ी ही होगी। क्या ख़याल है उसके बारे में आपका? तलाकशुदा मायूस शख़्स, भूली बिसरी आंटी, ऊपरी ताक़त, अजनबी शह्र, बिल्ली, बरसात, सांप, एक permanent ग्राहक, एक main stream cinema के सारे इम्कान तज़ार आते हैं मुझे तो..

बहरहाल आप क्या सोचते हैं ये जानना चाहूंगी।

सो आपकी मेल का इंतज़ार रहेगा।

पूजा


तसनीफ:

पूजा!

ये बात तो तय है कि मेरी और आपकी कुल चार आँखें मुराकामी के बारे में कोई आख़री फ़ैसला नहीं सुना रही हैं, बल्कि हम अपने देखे हुए नज़ारों को बयान कर रहे हैं। मुराकामी अव्वल से आख़िर तक मुझे अपनी तमाम कहानियों में शानदार नज़र आये, हर जगह। फिर एक उनको नोबल प्राप्त न होने पर विचार किया तो महसूस हुआ कि उन्होने इंसानी ज़िन्दगी के उस आम पहलू को अपनी कहानी में ज़्यादा छुआ है, जिसे शायद नोबल प्राइज़ देने वाली कमेटी अहम नहीं समझती होगी और वो है इंसान का मोहब्बत के साथ वो अटूट रिश्ता जो उसकी ज़िन्दगी को हर जगह एक अनदेखी डोर से बांधे रखता है। आदमी कितना ही अकेला क्यों न हो एक ख़्वाहिश किसी के साथ एक हो जाने की उसके दिल में पनपती रहती है। बाज़ दफ़ा तो ये ख़्वाहिश इतना अजीब रूप धार लेती है कि ख़ुद हमें समझ में नहीं आता कि हम किसे चाहते हैं, कितना चाहते हैं या फिर आख़िर चाहते ही क्या हैं। कीनो की आपने बात की तो मुझे मुराकामी की एक और कहानी ‘ए फोकलोर फॉर माय जनरेशन: ए प्री-हिस्ट्री ऑफ़ लेट-स्टेज कैपिटलिज़्म’ भी याद आ गयी। मुराकामी ने अपनी इस इकलौती कहानी में इक़रार किया है कि उनकी दास्तानें साठ की दहाई से तअल्लुक़ रखती हैं, ऐसा दौर जैसा फिर कभी नहीं आएगा और जो अपने विचारों और अपने इरादों के साथ मज़बूती से खड़ा आख़री दौर है, जिसके बाद अचानक पूरी बिसात उलट गयी है और ज़माना बदल गया है। हालांकि उन्होने इसी कहानी को उस ख़ास दौर का हिस्सा बताया है, मगर उनकी लगातार कई कहानियां पढ़ने वाला उनकी बाक़ी कहानियों में भी ये हक़ीक़त तलाश कर सकता है। साठ की दहाई के जापान को आँख बंद किये क़रीब और साठ साल हो चुके हैं, ऐसे में उस दौर से मंसूब करने पर ये कहानियां और ही तरह का रंग दिखाती हैं। उनके किरदार अचानक ज़्यादा बोल्ड नज़र आते हैं और उनकी तन्हाई और उसके साथ जुड़ी उलझनें भी ज़्यादा गहरा रंग इख़्तियार कर लेती हैं। कीनो हो, ड्राइव माय कार हो, बर्थडे गर्ल हो या फिर शहरज़ाद हर तरफ़ इंसानी तन्हाई मुराकामी का एक अहम सब्जेक्ट दिखाई देता है, एक ऐसा ख़ला, जो किसी शोर या शख़्स से भरा नहीं जा सकता, आप इसी लिए महसूस करेंगी कि मुराकामी अपने हर किरदार को तन्हाई से निकल जाने और उदासी के दामन को छोड़ देने का एक साफ़ मौक़ा देते हैं मगर वो किरदार कम्बख़्त तन्हाई और उदासी से अलग ही नहीं होते। टोकाई, कीनो, कितारु, काफुकु, टाकाज़ुकी, शहरज़ाद यहाँ तक कि मेन विदाउट वीमेन और ये जो लम्बी सी कहानी का नाम मैंने ऊपर लिखा उसके मुख्य किरदारों के पास भी ये मौक़े थे। मगर उन्होने वो मौक़े गँवाए जो उन्हें मुराकामी ने, बल्कि यूँ कहना चाहिए कि ज़िन्दगी ने दिए। मुराकामी ने मेरे ख़याल में औरत पर आरोप नहीं लगाया बल्कि उसकी एक ख़ूबी को बयान किया है। बरसों से हमारी सोसाइटी सच और झूठ पर अच्छाई और बुराई का बोझ लादती चली आयी है मगर मुझे लगता है कि काफुकु की पत्नी का खुला हुआ झूठ कीनो की पत्नी के ढके हुए सच से कहीं बेहतर था। ख़ैर बात लम्बी होती जायेगी। काश हम ‘एलिफेंट वैनिशेज़’, ‘टाउन ऑफ़ कैट्स’ और उनकी ऐसी दूसरी मशहूर कहानियों पर भी बात कर सकते। कोई बात नहीं, ये मौक़े तो जब तक सांसें चलेंगी मिलते ही रहेंगे क्यूंकि हमारा और आपका शौक़ एक ही है- ‘किताब’।

चलता हूँ, आपके मेल का इन्तिज़ार रहेगा।

शुक्रिया


पूजा:

तसनीफ़

इसमें कोई शक़ नहीं कि हर पाठक का अपना एक नज़रिया होता है जिसके साथ वो किताबों की दुनिया की सैर करता है। दो पढ़ने वाले लोग अगर कोई एक सी चीज पढ़ें तो कोई हैरत नहीं कि कई बातों के अलग-अलग अर्थ पाएंगे। हाँ आपस में बात करने पर दोनों ही के सामने तीन चीज़ें एक सी ज़ुरूर होंगी। पहला लेखक का नज़रिया, दूसरा उसका ख़ुद का नज़रिया, और तीसरा दूसरे पाठक का नज़रिया।

यही तीनों नज़रिए हमारे सामने भी थे, मुराकामी पर बात करते समय। मुझे निश्चित तौर पर बेहद लुत्फ़ आया आपसे उनकी कहानियों पर बात कर के। एक तरफ जहां मुझे आपसे कई और कहानियों के बारे में जानकारी मिली जिन्हें मैं जल्द ही पढूंगी भी, वहीं दूसरी तरफ़ मैंने कुछ घटनाओं, कुछ किरदारों को आपके नज़रिए से जब देखा तो कई नए अर्थ भी पाए जिन्होंने मुझे मुराकामी को कुछ और जानने में मदद की। अब तक हमनें चन्द कहानियों पर सिलसिलेवार बात की, इस दफ़ा किसी कहानी विशेष पर बात न करते हुए मैं मुराकामी के कुल काम पर जितना कि मैंने अब तक पढ़ा और मुझे आख़िर क्या हासिल हुआ, पर बात रखना चाहूंगी।

ये तो साफ़ तौर पर दिखायी पड़ता है कि मुराकामी आम किरदारों की ख़ास बातों को दर्शाते हैं। शायद यही कारण है कि हम आप तुरंत कहानी का एक अनकहा पात्र बन जाते हैं, उसे जीते हैं। इसके साथ ही जो चीज़ मैंने पायी वो ये कि उनकी दुनिया को और बेहतर जानने के लिए उनकी कहानी या नॉवल को सिर्फ़ एक बार पढ़ना काफ़ी नहीं। दो या तीन बार ज़हन से गुजरने पर मंज़र के पीछे कई और मंज़र दिखाई पड़ते हैं। बातों की तहें खुलती हैं और आप उनका अनकहा वो कहते हैं न between the lines.. वो पढ़ने पाते हैं।

उनकी कहानियों के किरदार समय के साथ grow करते हैं, अपनी स्वभाविक ज़ुरूरत यानी desire for love को लिए अपने unpredictable world में अपनी सारी तकलीफें (जिनको वो आसानी से सुलझा लें ऐसा कोई रास्ता मुराकामी नहीं छोड़ते) आपके साथ खुले तौर पर बांटते हैं। मुराकामी अपने किरदारों के साथ आज में जीते हैंऔर कल को सहेज के रखते हैं। उनके किरदार मेरे आपके जैसे होते हैं, न कि ऐसे जिनके लिये हम कहें कि ‘काश हम ऐसे होते’। मेरे नज़दीक यही वो बातें हैं जिनको हम उस सवाल के जवाब के तौर पर ले सकते हैं कि मुराकामी को क्यों पढ़ना चाहिए ? अपनी बात को मुराकामी के कथन के साथ ही खत्म करना चाहूंगी जिसमें उन्होंने कहा है…. “People who share my dreams can enjoy reading my novels.”

मुझे उम्मीद है हम फिर से किताबों की जगमगाती दुनिया की सैर करेंगे जिसमें मुराकामी सहित कई चमकते सितारे हमें नई दुनियाओं से परिचित करवाएंगे और हम-आप एक दूसरे के नज़रिए से वाक़िफ़ होंगे। तब तक के लिए…पढ़ते रहो, बढ़ते रहो..

अगले सफ़र के इंतज़ार में

शुक्रिया

पूजा

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