‘Nagn Deh Ki Yatra’, Hindi Kavita by Usha Dashora
बेसन के घोल में डूबे
हाथ से चिपका
क्या पीला-सा रंग है तुम्हारी यात्रा का?
या तुम्हारी कनपटी पर उग आयी पकी सफ़ेदी जैसा
कोई रंग
ढूँढना तुम्हारी गहरी नीली फेवरेट
डेनिम जींस की तरह
होगा शायद
या
झाँकना कहीं माँ के सुखाये
हरे पोदीने से मिलता हो
तुम्हारी यात्रा का रंग
डाकिये हमेशा प्रेमिका के प्रेम पत्र नहीं लाएँगे
तुम्हारे लिए
कभी कोई निमंत्रण पत्र भी होगा
समुद्र की सबसे ऊँची वाली लहर का
जिसकी जेब में बैठी नारंगी मछलियाँ आज़ाद करेंगी तुम्हें
घर और कार की किश्तों से
तब अपनी लिखी अधूरी कविता की बाँह थामे
अपनी फटी एड़ियों की दरारों को सहलाते हुए
चल पड़ना लहरों में
और वहीं तुम अभी-अभी जन्मे
नग्न बच्चे का चित्र बन जाना
होंठ का फटना एक सर्दी का जन्म है
इस सर्दी किसी स्टेशन पर जब ट्रेन खड़ी हो
तुम शहर का नाम मत पढ़ना
बस चल पड़ना
और उतर जाना रेगिस्तान की किसी अनाम ढाणी
सिल लेना टन भर रेत को अपनी चमड़ी के भीतर
और वहीं इंतज़ार करना
मासूम प्रेमी बन
किसी बाल्कनी में बैठी अपनी प्रेयसी का अठ्ठारह की होने का
अपने स्कूल के काले जूते की लेस बाँधना सीखने के बाद
पिता ने कहा होगा
तुम बड़े हो गए हो
तो चालीस के पार होते चल पड़ना पहाड़ों की ओर
थोड़ा बौना होकर
अपनी जीत की ट्राफ़ियों
और बड़े ओहदे की नेमप्लेट पर
डाल आना एक पुरानी फटी चादर
पानी की बोतल मत टाँगना कँधे पर
महसूस करना जून की प्यास
कैलेण्डर की चालाक तारीख़ों को मिटाने के बाद
उतारना सारे चोले
पोतना मिट्टी
फिर करना
नग्न देह की यात्रा
हो जाना दस के पहाड़े की तरह एकदम आसान
क्या आसान होना सबसे कठिन क्रिया है?
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