‘Nahi Yashodhara, Nahi’, a poem by Rashmi Saxena

नहीं यशोधरा, नहीं
अभी नहीं

अभी हृदय में तुम्हें
दुःख धारण नहीं करना है
देखकर किसी रोगी को

अभी किसी जर्जर,
जीर्ण काया पर
अश्रु नहीं बहाने हैं

विचलित नहीं होना है
निर्जीव मृत शरीर को देखकर

अभी नहीं जाना है तुम्हें
वनगमन गृह त्यागकर, मुक्त होकर
सांसारिक बन्धनों से

ज्ञान की
विजय पताका नहीं फहरानी है
अपनी इच्छाओं के साम्राज्य पर

मोह से मोक्ष तक के
मार्ग में आने वाले
पत्थर नहीं बीनने हैं तुम्हें

नहीं यशोधरा, नहीं
अभी तुम्हें नहीं होना है बुद्ध

अभी तुम्हें लेने होंगे
अनेकानेक जन्म

अभी तुम्हें जन्मने होंगे
और कई बुद्ध!

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