क कबूतर
ख खरगोश
ग से गांधी

लेकिन बच्चो! कौन-सा गांधी?
मोहनदास करमचंद गांधी
बापू गांधी?
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी?
(बच्चों का समवेत स्वर)
नहीं जानते हम बापू को
नहीं जानते राष्ट्रपिता को
हम तो केवल यही जानते
ग से गांधी
एक नहीं, बहुत से गांधी

क कबूतर
ख खरगोश
मास्टर जी क्यों उड़ गए होश?

हुआ आपका पाठ पुराना
हमें नहीं बिल्कुल दोहराना
उसमें एक ही गांधी

इ से इमली
आ से आंधी
स से सोना
च से चांदी

नया पाठ है—
अ से अन्न
अन्न है किसी देश का धन
मेहनत करके अन्न उगा
लेकिन ख़ुद कम से कम खा

क से कपड़ा
कपड़े से ढँकते है तन
जैसा कपड़ा वैसा मन
भरे पड़े हैं मिल-गोदाम
जेबों में, बस, चाहिए दाम।

ख से खोली
वह तो है बम्बइया बोली
सब को खोली,सबको काम
पढ़ समाजवाद का नाम

ग से गांधी
एक नहीं बहुत से गांधी
इ से गांधी
स से गांधी
च से चांदी-सोना गांधी

घ से घर
अब घर चल
आने वाली ज़ोर की आंधी।

कुमार विकल की कविता 'एक प्रेम कविता'

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कुमार विकल
कुमार विकल (1935-1997) पंजाबी मूल के हिन्दी भाषा के एक जाने-माने कवि थे।