कुछ तो है भीतर बेरंग बादल-सा
उमड़ता, घुमड़ता, गहराता, डराता
मैं ख़ुद की दहशत में हूँ
बेहद शान्त, भयभीत

जैसे कोई हारा हुआ खिलाड़ी
जैसे कोई ट्रेन से छूटा हुआ यात्री
जैसे कोई स्त्री की इच्छा पूरी कर पाने में
अभी-अभी असफल साबित हुआ एक मर्द
जैसे कोई सज़ायाफ़्ता

देश का राजा सुशोभित है
रसोईघर, स्नानघर, वेश्यालय, देवालय, चौराहे
अस्पताल, विद्यालय, मीडिया से लेकर
न्यायालय, संसद तक हर जगह

जिसे हम अख़बारों में
उन्नति और परिवर्तन पढ़ रहे हैं
यह एक त्रासदी है
जहाँ सत्ता अपना नया शब्दकोश
लगभग गढ़ चुकी है
इस शब्दकोश ने प्रजा को देशद्रोही कहा है
और देशद्रोहियों को कुशल प्रशासक

हमारे देश का यह स्वर्णिम काल है
जहाँ सब कुछ है
सिर्फ़ आम आदमी नहीं है…

परितोष कुमार पीयूष
【बढ़ी हुई दाढ़ी, छोटी कविताएँ और कमज़ोर अंग्रेजी वाला एक निहायत आलसी आदमी】 मोबाइल- 7870786842