विवरण: शेखर मानता है कि ईश्वर को न मानना एक अवगुण है। उसे उन सारे विचारों से घृणा है जो उससे उसका ईश्वर छीनते हैं। उसका ईश्वर दर्शक-दीर्घा में हँसता हुआ एक त्रासद व्यक्तित्व और एक प्रतिभावान निर्देशक है। इस निर्देशन में शेखर जो कर चुका है, वह एक असफल फ़िल्म है। जहाँ ठहरा हुआ है, वह एक प्रदीर्घ मध्यांतर है। जहाँ जाना चाहता है, वह एक तनावपूर्ण क्लाइमेक्स है।
शेखर के हाथों में चीज़ें कम हैं, पैरों में ज़्यादा।
- Hardcover: 160 pages
- Publisher: Vani Prakashan (2018)
- Language: Hindi
- ISBN-10: 9387889262
- ISBN-13: 978-9387889262
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