nayi kitaab tamasha na hua

विवरण: मानवीय सभ्यता के ‘आधुनिकतावादी’ दौर में ऐसा प्रतीत होने लगा था कि मनुष्य ने अन्ततः अपनी मुक्ति का पथ प्रशस्त कर लिया है और अब वह अपनी नियति के मकड़जाल से निकल कर, अधिक तर्कसंगत एवं विवेकशील प्राणी के रूप में अपनी गरिमा स्थापित कर सकने की स्थिति में है। स्वतन्त्र मानवीय अस्मिता अब एक स्वप्न नहीं, वास्तविकता लगने लगी थी। लेकिन, दो विश्व युद्धों और विजेता शक्तियों की आपसी बन्दर-बाँट ने पूरी मनुष्य जाति को गहरे अवसाद में डुबो दिया। यह एक ऐसे मोह भंग की स्थिति थी जिससे उबर पाने के सारे रास्ते बन्द थे। मुक्ति की कामना ‘गोदो का इन्तज़ार’ भर थी। बीसवीं शताब्दी का अवसान, तमाम मुक्तिकामी विचारधाराओं और फलसफ़ो का भी अवसान जैसा साबित हुआ।

परन्तु, यह भी तय है कि अगर कोई रास्ता सूझेगा तो वह किसी नये विचार या किसी हासिल विचार के पुर्नअन्वेषण की कौंध में ही। एक तरह से कहा जा सकता है कि प्रस्तुत नाटक विचार शून्य हो चुके हमारे समय में एक नये और प्रासंगिक विचार के लिए तड़प का नाटक है। मानवता और नाटक को बचाये रख सकने की तड़प का नाटक।

  • Format: Paperback
  • Publisher: Vani Prakashan (2017)
  • ISBN-10: 9352294505
  • ISBN-13: 978-9352294503

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nayi kitaab tamasha na hua

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