विवरण:
Non-Resident Bihari की सफलता के बाद एक और दिलकश पेशकश—बागी बलिया की मिटटी से उपजी एक मीठी-सी प्रेम कहानी!
मोहब्बत के मुद्दे पर दो विचारधाराओं की टकराहट। एक धारा मोहब्बत के नाम पर मौज-मस्ती में मशगूल है, दूसरी मोहब्बत में किसी तरह की मिलावट के सख्त खिलाफ है। बागी बलिया का कडक़ लौंडा शिवेश वैलेंटाइन बाबा की मोहब्बत की मल्टी डायमेंशनल कम्पनी का फूल टाइम इम्प्लॉई है जिसका एकमात्र धर्म है ‘काम’। तो शिवेश का और उसके ठहाकों पर ब्रेक लगाता मनीष जिसका दिन फैज की लाइन ‘और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा’ से शुरू होकर सुजाता के दिन-भर के किस्से सुनने में बीत जाता है। सुजाता मॉडर्न, स्टाइलिस्ट, सेक्सी, बिंदास लेकिन जो कोई ‘उसे चिडिय़ा समझकर चारा चुगाने की कोशिश करता है, उसको वो चुकुन्दर बनाकर रख देती है।’ वहीं मोहिनी का दिल मोहब्बत के इस मौसम में भी उखड़ा हुआ है—‘साला, अब तो यही लगता है कि जिसका जितना मोटा पर्स, वो उतना बड़ा आशिक’। पढि़ए शशिकांत मिश्र का दूसरा उपन्यास ‘वैलेंटाइन बाबा’ और जानिए कि क्या है प्यार—ढाई आखर वाला लव या वन नाइट स्टैंड वाला लस्ट?
- Paperback: 150 pages
- Publisher: Radhakrishan Prakashan/Funda; First edition (31 May 2017)
- Language: Hindi
- ISBN-10: 8183618383
- ISBN-13: 978-8183618380
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