ख़यालों के पंख होते हैं
और सपनों की उड़ानें
लेकिन नज़्में
हर्फ़ों की नाव में
समंदर पार करके
लम्स की ज़मीन पर,
नंगे पांव पैदल चलती हैं
अक्स की फ़ज़ा का तार्रुज़ होता है
बहुत वक़्त लग जाता है
मुझ तक पहुंचने में इनको
फिर आकर
चुप चाप इर्द गिर्द
बिना आवाज़ किये
बैठ जाती हैं पास मेरे
यादों की पगडंडी पर
जैसे ये हो कोई सैयारा
और मैं एक ठहरा सितारा…