‘Neend Aur Rajkunwar’, a poem by Nirmal Gupt
मैं सोते हुए खर्राटे लेता हूँ
इस बात का मेरे सिवा
सबको अरसे से पता है
कोसों दूर राजमहल में इससे
ध्वनिरोधी शयनकक्ष में सोते राजकुँवर की
नींद में खलल पड़ता है
मेरी नींद संदेह के घेरे में है
राज गुप्तचरों को पता लगा है कि
उसमें घोड़ों की जमकर ख़रीद-फ़रोख़्त होती है
तमाम घुड़सवारों का एकजुट हो जाना
सात पहरों में रहते राजकुँवर के लिए
ख़तरे की घनघनाती हुई घंटी है
मैं मुँह अँधेरे कभी नहीं उठता
दिन चढ़े तक सोता हूँ
इत्मिनान की चादर ताने
मच्छरों के दंश और उजाले से
ख़ुद को बख़ूबी बचाता
राजसिंहासन के लिए यह डरावनी ख़बर है
राजघराने के लिए
राजकुँवर का कच्ची नींद में जाग जाना
बहुत बड़ी मुसीबत है
और मेरा रोज नींद में उतरना
बग़ावत की पदचाप
महल की सुरक्षा में सुराख़ हो गये हैं
जब मैं चैन से सोता हूँ
राजकुँवर पैर पटक-पटक कर रोता है
उसकी ज़िद है कि उसे हर हाल में
मेरे वाले खर्राटे ही चाहिए
राजपाट पाने से पहले उसे
प्रजा की गहरी नींद चाहिए!
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