Book Teaser:

 

लेखक के बारे में:

किसी परिंदे को कभी घर बुनते देखा है या कभी किसी शिकारे को लहरों पे मचलते? एक एहसास है हवाओं में गूँजता और रोज़ नये सपने बुनता। एक ख़ुशनुमा खिड़की का दरवाज़ा खोल के देखता है कोई, कभी सर्द गलियारे के अँधेरे से भी पर जितनी बार देखो कुछ अलग ही नज़र आता है। तेजस ये नाम भर है उसका पर खुद में एहसासों की क़िताब। हर पन्ना अलग रंगों से भरा जैसे बचपने में सारे रंग घुल रहे हों। कुछ गुस्से से लाल-पीले पन्ने, कुछ सर्द ग़मों से स्याह, कुछ पे सादगी इतनी की जो चाहे लिख लो।

तेजस नाम की क़िताब का पन्ना तब शुरू होता है जब उसने बाबा के साथ एक नई दुनिया में कदम रखा, किताबों की दुनिया। जहाँ हर कहानी में वो खुद को पाता। उसे प्यार हो गया इस दुनिया से, उसका पहला प्यार। उसने इन कहानियों को जोड़ के कुछ नयी कहानियाँ बुनी, अतरंगी कहानियाँ। बाबा का जाना और उसका कहानियों से दूर होना, समय का खेल बड़ा भारी था। पर प्यार पहला था पलट के बार-बार दस्तक देता रहा और तेजस भी अपने पहले प्यार को कैसे भूलता, फिर से शुरू किया पन्नों पे नई लकीरें उगाना।

तेजस को तेजस उसके पहले प्यार ने बनाया, प्यार शब्दों से, सपनों से, किताबों से। तेजस उन सभी एहसासों का किस्सा है, एक कहानी है, एक रिश्ता है। ये क़िताब उसके अनछुए एहसासों से शायद आपका रिश्ता बुन दे।

सम्पर्क माध्यम: Words By Tejas 

विवरण: 

अनकही शुरुआत

हर शाम जागता था मैं, कुछ कहानियाँ गढ़ने की कोशिश में किसी शिल्पकार की तरह। कुछ तो हथौड़े की धमक और छेनी की चोट से, बनते-बनते ही चूरा हो गयीं। कुछ को मैं जब अपने डायरी के पन्नो में रात छोड़ जाता था, ओस के बँदूों सी सुबह ग़ायब हो जाती थीं। बहुत ढूंढा फिर शाम में उनको, चिरागों को भी जलाया, पर ओस की बँदू जो ठहरी, ढूंढ नहीं पाया। कुछ तो ऐसी थीं जो बनना ही नहीं चाहती थीं, बहुत धोया नमक के पानी से, बहुत रगड़ा पर चमक आयी ही नहीं। कुछ ने तो दुश्मनी भी निभायी मुझसे मेरे हथौड़े की चोट शायद ज्यादा थी, उनकी किरछें हाँथ में चुभ गयीं, मेरे थोड़ा खून भी निकल आया था, शायद नया शिल्पकार रास नहीं आया था उन्हें। आता भी कैसे पत्थरों को तराशना सीख रहा था मैं, कभी चोट ज़ोर की कर देता तो कभी आधी बनने के बाद बीच रास्ते में छोड़ देता। कोशिश बदस्तूर जारी थी, कि बन जाये कुछ कहानियाँ और ओढ़ लूँ उनको। छुप जाऊँ उनमें।

हर शाम जब मेरी सुबह होती थी, फिर से चल पड़ता था मैं अपने कहानियों के सफर पे। धीरे-धीरे दोस्ती होने लगी थी हमारी, अब कुछ कहानियाँ बन गयीं थी जो मुझे प्यार करने लगी थीं, मैं भी समेट लेता था खुद को उनके दामन में। थोड़ा कमजोर था मैं, तो खुद को छुपाना सीख लिया था मेरी दोस्त कहानियों के पैरहन में, जब भी कोई तीखी कहानी मुझसे लड़ने आती थी। वो भी छुपा लेती थीं मुझे जैसे कोई माँ छुपा लेती है अपने बच्चे को अपने आँचल में, जिससे डर भी डरने लगता है।

हर शाम मेरे अंदर का शिल्पकार थोड़ा बड़ा हो रहा था, मेरे हाथों पे मेरी पकड़ बढ़ती जा रही थी और मेरी कहानियों का प्यार मुझपे। उनके आग़ोश में खो के ऐसा लगता था कि डूबा रहूँ इनमें, कभी बाहर न आऊं मैं। जैसे कोई प्रेमी अपने प्रेयसी की आँखों में खो जाता है। शब्द दर शब्द, हर्फ़ दर हर्फ़, सफ़्हा दर सफ़्हा मेरा इश्क़ बढ़ रहा था उनसे और उनका मुझसे।

फिर मेरी उम्मीदों का बोझ ढोने लगीं मेरी कहानियाँ और बोझ इतना ज्यादा कि दब गयीं वो, न जाने कब मेरी वो छोटी कहानियाँ और छोटी हो गयीं, और कविताओं की शक्ल ले ली। बहुत रोया मैं पर कुछ कर नहीं पाया, तो सिल दिया उन कहानियों की यादों, उन कविताओं को एक साथ अपने आँखों के पानी से।

ये सिर्फ मेरी कवितायें नहीं हैं, मेरी कहानियाँ हैं और उनकी यादें हैं। एक शिल्पकार के जज़्बातों का पुलिंदा हैं, जो कुछ पन्नों पे समेटी हैं मैंने।

एक झलक:

1

साथ सपने देखे थे कभी हमने, सितारों को छूने के।
मेरे कंधे की सीढ़ी पे चढ़, तुम आगे निकल गए।

ऐसा नहीं कि तुम्हारे सितारों को छूने से, मुझे ख़ुशी नहीं मिली।
पर रेत पे हमने जो पैरों के जोड़े बनाये थे, सब वहीं का वहीं धरा रह गया।

पलट के देखो और दिख जाएँ, जो आँसू मेरे।
समझ लेना कि हमारे सपनों का चूरा, मेरी आँखों में पड़ा रह गया।

कभी गिर जाओ ना, सपनों के आसमां से तुम।
बस इसी डर से मैं, कंधा लिए अपना वहीं पे खड़ा रह गया।

साथ सपने देखे थे कभी हमने, सितारों को छूने के..।

2

तू बरस रही थी मुझपे, बूंदों की तरह।
वक़्त फिर लिख रहा था मुझपे, अंजान किताब।
तेरे लब छू रहे थे मुझको, स्याही की तरह।
सफ़्हा दर सफ़्हा बन रही थी वो अंजान किताब..।

अन्य जानकारी:

  • Paperback: 120 pages
  • Publisher: Notion Press; 1 edition (2018)
  • Language: Hindi
  • ISBN-10: 1644295520
  • ISBN-13: 978-1644295526
पोषम पा
सहज हिन्दी, नहीं महज़ हिन्दी...