‘Nishedh Hai Vamangini Ka Preyasi Hona’, by Nidhi Agarwal
अनपढ़
तुमने क्या लिखा
और मैंने
क्या पढ़ लिया
अनपढ़ दिल ने
चिर वेदना से…
आँचल ये भर लिया।
शंका
तुम्हें खोने के डर से
तुम्हें पकड़े रखने की
जद्दोजहद में,
तुम्हें पाकर भी…
तुम्हें चाहने के सुख से
वंचित रह जाती हूँ।
जाने क्यों तुम्हारे प्रेम
में समर्पित मैं,
तुम्हारे मौन से सदा
शंकित हो जाती हूँ।
कारण
दो ढेरी बनती चली गयीं
एक विश्वास की,
एक अविश्वास की,
समय के साथ
अविश्वास की ढेरी बढ़ती गई
और आज विश्वास का
केवल एक कारण बचा है
कि यह नादान दिल
तुम पर अविश्वास न करने की
जिद पर अड़ा है।
वामांगिनी
सूरज की लिखी कविताएँ
चाँद से सुनकर
वह चाँद से प्रेम कर बैठी,
सूरज को अखरता था
उन दोनों का प्रेम में होना।
वह चाँद के प्रेम में थी
जबकि चाँद
चमकता था
सूरज के प्रकाश से!
सूरज नहीं जानता
कि वह केवल शब्द उकेरता है,
शब्दों के कविता हो जाने के
अपने सफ़र में
तज देनी पड़ती है
सारी उग्रता,
प्रेम की सहज अभिव्यक्ति में
प्रेमी का सूरज होना निषेध है।
वह बादल के प्रेम में थी
बादल सागर से उपजा था,
सागर की ऊँची लहरें उसे
डराया करती थीं…
बादल के मिट जाने पर
बादल की बूँदें
उसकी हथेली में खिलखिलाती थीं,
सागर नहीं जानता कि
प्रेम में निषेध है
अपने पृथक
अस्तित्व का होना!
वह रात के प्रेम में थी,
और दिन नाराज़ था,
रंगों का सौंदर्य
संसार का स्पंदन
सब दिन से ही था।
नादान दिन नहीं जानता
कि प्रेम में निषेध है
आँखों का खुला होना!
वह ‘उसके’ प्रेम में थी
वह अचंभित था।
वह वही थी
पर अब उसकी थी
लेकिन आकर्षण गौण था।
वह आँखों की आद्रता समेटे
मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
वह भलीभाँति जानती थी
कि पुरुषों की प्रेम-कल्पना में
निषेध है
वामांगिनी का
प्रेयसी होना!
अलविदा
जाते हुए तुमको भी
कुछ खला तो होगा,
प्यार पल भर को ही सही
कभी पला तो होगा।
आत्महत्या
आजकल मैं भी जला रही हूँ
मेरे अस्तित्व पर छाए
अमेज़ॉन से भी घने,
तुम्हारी स्मृतियों के जंगल.
अंतर बस इतना है कि
मैं जानती हूँ
जंगलों के बिना जीवन
सम्भव नहीं है!
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