माँ है रेशम के कारख़ाने में
बाप मसरूफ़ सूती मिल में है
कोख से माँ की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है
जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारख़ानों के काम आएगा
अपने मजबूर पेट की ख़ातिर
भूख सरमाए की बढ़ाएगा
हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चाँदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
ख़ून उसका दिए जलाएगा
ये जो नन्हा है भोला-भाला है
सिर्फ़ सरमाए का निवाला है
पूछती है ये उसकी ख़ामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है?
अली सरदार जाफ़री की नज़्म 'कौन आज़ाद हुआ'