नर के शोणित को अग्नि का पान कराने वाली
तन की वीणा को झंकृत कर गान सुनाने वाली,
स्वप्न चिरइया के पंखों की व्याकुल तीव्र गति तुम
मन मयूर के नृत्य को वर्षा कर उकसाने वाली,

ओ कजरारी अँखियों वाली
ओ कजरारी अँखियों वाली

चंचल चपल नयन को बस केंद्रित कर पाई तुम ही
एक पुष्प तक भँवरे को सीमित कर पाई तुम ही,
लौह हृदय के सरियों को विकृत कर डाला तुमने
तालों के पानी में हलचल को भर डाला तुमने,

नयनों के मदिराघर से मदिरा छलकाने वाली

ओ कजरारी अँखियों वाली
ओ कजरारी अँखियों वाली

देवनगर की बाला, सुंदरता की गुप्त पिटारी
इत्र सुगन्धों की जननी , धरती की केसर क्यारी,
ऋतुराज की शोभा हो तुम वर प्राप्ति हो तप की
धरती पर फैली हरियाली और नीलिमा नभ की,

प्रीत निशा में प्रतिपल तारों को चमकाने वाली

ओ कजरारी अँखियों वाली
ओ कजरारी अँखियों वाली

अंधकार की माया कुन्तल के भीतर लिपटी है
स्वर्ण भाल से दिनकर की किरणें बहती रहती है,
बिजली के गिरने सा होगा हल्का स्पर्श तुम्हारा
रोमांचित कर देता नर को केवल दर्श तुम्हारा,

प्यासे प्राणों के अम्बर पर मेघ सजाने वाली

ओ कजरारी अँखियों वाली
ओ कजरारी अँखियों वाली

नर के शोणित को अग्नि का पान कराने वाली

ओ कजरारी अँखियों वाली
ओ कजरारी अँखियों वाली

————– भूपेन्द्र सिँह खिड़िया ————–

SOURCE :- गीतरश्मी , गीत क्रमांक – 53

भूपेन्द्र सिँह खिड़िया
Spoken word artist, Script writer & Lyricist known for Naari Aao Bolo, Makkhi jaisa Aadmi, waqt badalta hai. Instagram - @bhupendrasinghkhida Facebook - Bhupendra singh Khidia Fb page :- @bhupendrasinghkhidia