हवा में तैरते बादलों के टुकड़े
पीठ पर सवार पानी की बूंदें
जो छोड़ गया तेरी छत पर
क्या पता शायद
वो रहमतों की बूंदें
मेरी हिस्से में थी…

शाहिद सुमन
चलो रफू करते हैं