पहाड़ में पगडण्डियाँ
मार्ग भी होती हैं, गन्तव्य भी,
पहाड़ में होना
एक पगडण्डी पर होना है,
यहाँ गाँव भी उगता है
तो किसी पगडण्डी के डण्ठल पर
हर शाम, एक अनबूझे आनन्द में
कूद जाता है पहाड़ से नीचे सूरज
और अंधेरे में सुनायी देती है
जंगल की आवाज़
अपने पाषाणकालीन स्वरूप में
अलस्सुबह किसी पहाड़ के पीछे से
फिर उछलकर निकलता है सूरज
और पगडण्डी के रास्ते
प्रविष्ट हो जाता है
भोर का संदेस लेकर
कच्चे-पक्के मकानों में एक-सा
पगडण्डियाँ धमनियाँ और शिराएँ हैं
जिनसे गुज़रती हैं
गीले और सूखे पत्ते लाती औरतें
सब्ज़ियाँ बाज़ार ले जाते किसान
ससुराल जाती डोलियाँ
स्कूल जाते बच्चे
पलायन करते परिवार और युवक
सर्दियों में, पहाड़ पर गिरती है बर्फ़
और हफ़्ते भर नहीं पिघलती
रुक-सा जाता है जीवन का कलरव
पगडण्डियाँ, पलायन कर गयीं
एड़ियों की गर्मी चाहती हैं!