मैं स्त्री हूँ
जानती हूँ
मुझे बहुत-सा ग़ुस्सा सहना पड़ा था
जो वस्तुतः मेरे लिए नहीं था

बहुत-सा अपमान
जिसे मुझ पर थूकता हुआ इंसान
पगलाए होने के बावजूद
मुझ पर नहीं
कहीं और फेंकना चाहता था

यह तो संयोग ही था कि मैं सामने थी
पर मैं भी कहाँ मैं थी

मुझे तो कल ही उसने भींचा था
हाँफते-हाँफते
पराजित योद्धा की तरह थककर
मेरे वक्ष पर आन गिरा था
फुसफुसाया था तुम जो हो
मेरी धारयित्री
मेरा परित्राण
मेरी गत-आगत कथा…

Book by Raji Seth: