मेरी क़ब्र का पत्थर
मेरे पेट पर रख देना
तब भरा दिखेगा पेट मेरा
और कोई हँसकर नहीं
कह पाएगा कि
‘लाश का पेट ख़ाली है!’

लोग बहुत ग़ौर से
देखते है लाशों को
ज़िन्दों को भी देखना
सीख लेते तो?

तब उनमें से कोई देखे
मेरी खपरैल आँखें
जिसमें फँसी पड़ी है भूख
दो वक़्त की रोटी के लिए

मेरे हाथों में फँसी
रेखाएँ भी देखना
और उनपर डाल देना
कोई ऐसा जल
कि मरने बाद तो पता चले
क्या थी मेरी नसीबी रेखा
जिसने शायद
मेरी मज़दूरी के दिनों में
कर लियी थी आत्महत्या

कोई
ज़ोर से फोड़ देना मेरी आँखें
जिसके ख़्वाब छोटे
होकर भी पूरे न हुए,
मेरी टाँगों को नहलाना
गर्म पानी से
जो बिना थके चलती रहीं
जीवन से मृत्यु तक अनवरत,
मेरी चीख़ों को नहीं मिली कभी
प्रतिसाद की साद,
जब ग़रीबी की मिट्टी से
ढक देगें मेरी लाश
तब एक बड़ा-सा पत्थर लेना
जो हो इतना बड़ा हो कि
तानाशाह राजा के
हवेली पर गिर जाए
उसकी छाँव

और सुबह-सुबह
जब वो जागे राजा
तो
उस छाँव के अन्धेरे में
दिखे उसे वही अन्धकार
जो उसकी व्यवस्था से
झेल रही है उसकी आवाम।