‘Peeda Ki Paribhasha’, a poem by Harshita Panchariya
अर्द्धरात्रि के समय
हम दोनों के मध्य
उतनी ही दूरी थी जितनी
दूरी होती है,
वर्षा की दो बूँदों के मध्य।
पर गिरती हुई बूँदो को कहाँ पता होता है
कि क्षणिक होती ये बूँदे,
कब, कहाँ और कैसे ठहरेंगी?
ये क्षणिक बूँदे अल्प समय में
ढूँढ लेती हैं प्रेम की अगाधता
साथ-साथ गिरते-गिरते
अपने अन्त के पूर्व
जान जाती हैं
गिरने की ध्वनि से बड़ी
ध्वनि खोने की है।
अगर कभी इन गिरती हुई
बूँदों की ध्वनि को सुन सको
तो बताना मुझे,
साथ होकर भी
साथ ना होने की पीड़ा को
परिभाषित करना है मुझे।
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