‘पहली बूँद नीली थी’ सोनू यशराज का पहला कविता संग्रह है। इस संग्रह में कवयित्री की काव्य यात्रा और क्रमागत विकास देखा जा सकता है।

एक चीनी कहावत है: “एक बंद किताब काग़ज़ों का एक पुलिंदा भर है।” ‘किताबें’ शृंखला की कविताएँ इण्टरनेट के अभ्युदय के इस युग में इन ‘काग़ज़ों’ की सही क़ीमत, सही जगह, और सही पहुँच की वकालत करती हैं। निःसन्देह ये कविताएँ कवयित्री की प्रतिनिधि कविताओं में गिनी जाती हैं और आशानुरूप संग्रह में बिल्कुल शुरुआत में आती हैं। मुझे इस शृंखला की तीसरी कविता ‘चोरी’ बहुत पसन्द आयी। इस कविता में उन ठिकानों के पते हैं, जहाँ किताबों को पुस्तकालयों की उपेक्षित क़ैद से आज़ाद होकर पहुँचाया जाना चाहिए।

संग्रह में मेरी सबसे प्रिय कविताएँ ‘रुरु’ और ‘खुरच’ शीर्षक कविताएँ रहीं। ‘रुरु’ एक जातक कथा के मृग पर आधारित है। इस कविता से कुछ प्रभावी पंक्तियाँ हैं—

“लौट आया चौकड़ी भरता
रुरु मृग पुनः अपने घर
जंगल ही उसका घर था
उसे नहीं भाया भोजन सोने के पात्र में
सोना था वह स्वयं
एक जैसी बात किसी को भाती है भला।”

सोनू यशराज की कविताओं में यहाँ-वहाँ एक बच्ची दिखायी देती है। इन कविताओं को पढ़कर लगता है कि इस कवयित्री ने अपने भीतर की बालिका को अक्षुण्ण रखा है—

“पुगते हैं जल्दी-जल्दी
तीसरा हाथ रखकर दोनों
कमबख़्त चालाकी और सफ़ाई देने का
समय नहीं है
बस खेलना है
भरी दुपहरी।”

जहाँ बालिका की स्मृति होगी, वहाँ उसके उत्तरोत्तर जीवन में खरोंचे गए सपनों और देह का दुखद वृत्तान्त भी होगा। अच्छे घर की संस्कारी लड़की से अपेक्षा की जाती है कि वह ऊँची दुनिया की इमारतों को निगाह नीची कर देखे। इसी के कंट्रास्ट में इस पुरुषवादी संसार में स्त्री को पुरुष इस तरह देखते हैं—

“स्त्री अभी-अभी सह कर आयी है
तीक्ष्ण निगाहों के चाबुक
क्यों-कहाँ-कब चली सवारी
जैसे जुमलों के जवाब देकर!”

इसी विषय पर ‘चिड़िया उड़’ कविता में ‘माँ उसकी ओर देखती और जी जाती’ जैसी ममतामयी पंक्ति है और कोमलांग बच्ची के उत्पीड़न की भयावहता भी। हालाँकि यह सोनू यशराज का तरीक़ा है कि स्त्री विमर्श उनके यहाँ सुकोमल, सौम्य तरीक़े से आता है। वह बड़ी सहजता से खरपतवार की तुलना स्त्री से करती हैं और ‘पिछले जन्म की स्त्री’ कविता में बिना लाउड हुए कहती हैं—

“किसी भी जातक कथा में
बुद्ध नहीं बने ‘स्त्री’
पर स्त्री बुद्ध होना चाहती है!”

‘प्रेम गली अति सांकरी’ संग्रह की अच्छी कविताओं में है। यहाँ रंग बहुत हैं पर कुछ रंगों का नाम हिन्दी में और कुछ का अंग्रेज़ी में होना अखरता है। यहाँ भाषाई एकरूपता बरती गई होती तो यह कविता अधिक मनोहारी हो जाती।

जाति विमर्श भी इन कविताओं में आता है। ‘उसे स्वीकार्य है विलगता’ जाति के आधार पर उपेक्षित वर्ग के मन में ठहरी हुई टीस को व्यक्त करती है। यहाँ इस व्यवहार को स्वीकार करना सहज नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। इस विरोध को और मुखर होना चाहिए, तब तक, जब तक कि जातिगत अवहेलना पूरी तरह नेस्तनाबूद न हो जाए। भारतीय धाविका हिमा दास को समर्पित ‘सोना होती लड़की’ भारत में उपस्थित जाति व्यवस्था की बेड़ियाँ तोड़कर उपलब्धि अर्जित करने वाली एक बेटी की विजय गाथा है।

चाँद-तारों-आकाशगंगाओं का वैज्ञानिक पहलू सर्वथा भिन्न है। कवि उसे अपनी तरह से परिभाषित करने का प्रयास करते हैं। ‘भेद का भाव’ कवयित्री का प्रयास है एक धुँधले तारे की दशा समझने का। यहाँ रोशनी साझा करने की रवायत की उम्मीद सोनू यशराज रखती हैं।

‘लगातार बारिश सबसे पहले/ कम बारिश से उपजी बेचैनी को धोती है’ जैसी पंक्ति से आरम्भ हुई कविता ‘झमाझम’ प्रकृति में बेखटके घटित होने वाली घटनाओं का सुंदर वर्णन करती है। प्रकृति को समर्पित एक अन्य कविता ‘पहली बूँद नीली थी’ इस संग्रह की शीर्षक कविता है। कविता संग्रह का आवरण इसी विचार को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है।

विगत दो वर्षों में हमने कोरोना-काल का भयावह मंज़र देखा है। इस दौर में अच्छी-बुरी कविताएँ लिखी गई हैं। इस लिहाज़ से सोनू यशराज की कविताएँ कोरोना-काल की बेहतर कविताओं में गिनी जाएँगी। इसका कारण इनका बिना लाउड हुए सहज और किंचित प्रतीकात्मक तरीक़े से अपनी बात रखना है—

“मेरी मुस्कान पर मास्क है
जिसकी गिरफ़्त से बची है
हवा की छुअन।”

‘कुएँ की जगत पर प्यास की जुगत’ सर्वहारा के संघर्ष की कहानी है और संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से है। जीवन के कठिन दिनों का सूत कातते जन के बारे में यह कविता कहती है—

“उनके पास खाना पका और खा लेने जितने बर्तन थे
अतिथि के आने पर पड़ोसी के बर्तन भी घर आ जाते!
जब उनके घर की छत पर बूॅंदे राज करतीं
तब बारिशें भी घर को मेज़बानी के लिए उकसातीं!”

महान रूसी साहित्यकार चेखव की एक कहानी है जिसका हिन्दी अनुवाद ‘छोटा-सा मज़ाक़’ शीर्षक से उपलब्ध है। इस कहानी की नायिका नाद्या को समर्पित कविता है— ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ नाद्या’। इस कविता को पढ़कर हुई अनुभूति की सघनता इस बात पर निर्भर करती है कि आपने वह कहानी पहले पढ़ी है या नहीं। कविता, कम शब्दों में नाद्या के साथ न्याय करती है एवं कहानी पढ़ने को प्रेरित करती है। कुछ पाठकों को दुबारा भी। इन पंक्तियों का लेखक उनमें शामिल है।

संग्रह में छोटी, मध्यम लम्बाई की और लम्बी कविताएँ हैं। सोनू लम्बी और मध्यम लम्बाई की कविताओं का शिल्प कुशलता से साध पाती हैं। संग्रह की कुछ छोटी कविताएँ और अधिक प्रभावी हो सकती थीं। संग्रह में कहीं-कहीं छंद-सी लयात्मकता भी दिखती है—

“गाँव के सारे बैल, होरी
और कमली जैसी छोरी”

सोनू यशराज के इस संग्रह का हिन्दी काव्य संसार में स्वागत है। इस संग्रह की विशेष बात यह है कि लेखिका सभी कविताओं में नैसर्गिक रूप से सहज बनी रहती हैं और किसी बनावटीपन का सहारा नहीं लेतीं।

'अलगोज़े की धुन पर: प्रेम का परिपक्व रंगों की कहानियाँ'

‘पहली बूँद नीली थी’ यहाँ ख़रीदें:

देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।