पेरियारः प्रेरणा और प्रयोजन

कृपाशंकर चौबे

बहुजन साहित्य की अवधारणा को सैद्धान्तिक आधार देनेवाले प्रमोद रंजन ने समाज सुधार आन्दोलन के पितामह पेरियार ई.वी. रामासामी (17 सितम्बर, 1879 – 24 दिसम्बर, 1973) की तीन किताबें हिन्दी में उपलब्ध करा दी हैं। ये किताबें हैं— ‘जाति-व्यवस्था और पितृ सत्ता’, ‘धर्म और विश्व दृष्टि’ और ‘सच्ची रामायण’। प्रमोद रंजन द्वारा सम्पादित इन किताबों को राधाकृष्ण ने छापा है।

इन किताबों के बनने की कहानी प्रमोद रंजन ने ‘हिन्दी पट्टी में पेरियार’ शीर्षक सम्पादकीय में कही है कि कैसे टी. थमराईकन्नन से उनकी भेंट हुई जो यह चाहते थे कि पेरियार साहित्य हिन्दी में उपलब्ध हो, फिर कैसे मामला आगे बढ़ता गया और अंततः तीन किताबें बन गईं। ‘जाति व्यवस्था और पितृ सत्ता’ किताब बताती है कि पेरियार जाति एवं पितृसत्ता के ख़ात्मे के बाद किस तरह के सामाजिक सम्बन्धों की कल्पना करते थे। इस किताब में ‘बुद्धिवाद : पाखंड व अंधविश्वास से मुक्ति का मार्ग’, ‘महिलाओं के अधिकार’, ‘पति-पत्नी नहीं, बनें एक दूसरे के साथी’, ‘जाति व्यवस्था’, ‘जाति के बारे में’, ‘जाति व्यवस्था की कार्य पद्धति’, ‘ब्राह्मणों को आरक्षण से घृणा क्यों’, ‘जाति और चरित्र’, ‘जाति व्यवस्था का क्षय हो’ शीर्षक पेरियार की रचनाएँ दी गई हैं। परिशिष्ट में ‘पेरियार : जीवन का वर्षवार लेखा-जोखा’ दिया गया है कि कैसे काशी में निःशुल्क भोजन सिर्फ़ ब्राह्मणों के लिए होने और ब्राह्मण नहीं होने के कारण उन्हें कितना दुःख हुआ। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुरोध पर 1919 में पेरियार द्वारा कांग्रेस की सदस्यता लेने, कुछ दिनों बाद उनके तमिलनाडु कांग्रेस का प्रमुख बनने, केरल के कांग्रेस नेताओं के कहने पर वाईकॉम आन्दोलन का नेतृत्व करने, कांग्रेस के भीतर जातिभेद होने तथा कांग्रेस द्वारा दलितों के लिए आरक्षण का प्रस्ताव नहीं स्वीकार करने के कारण कांग्रेस छोड़ने, जस्टिस पार्टी से सम्बद्ध होने, 1944 में जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम करने का वृतांत भी दिया गया है। परिशिष्ट में ही ‘पेरियार के सुनहरे बोल’ दिया गया है और ललिता धारा की टिप्पणी ‘महिलाएँ उन्हें कहती थीं पेरियार’, टी. थमराईकन्नन की टिप्पणी ‘सामाजिक परिवर्तन के आंदोलनों में पेरियार का स्थान’, वी. गीता तथा एसवी राजादुरै की टिप्पणी ‘पेरियार के राजनीतिक विचारः प्रयोग और प्रभाव’ तथा वी. गीता की टिप्पणी ‘आम्बेडकर और पेरियार की बौद्धिक मैत्री’ दी गई है।

पेरियार की पुस्तक ‘धर्म और विश्व-दृष्टि’ दो खंडों में विभाजित है। पहले खंड में वी. गीता और ब्रजरंजन मणि के लेख हैं जो पेरियार के दार्शनिक चिंतन के विविध आयामों को उद्घाटित करते हैं। इसी खंड में पेरियार के ईश्वर और धर्म सम्बन्धी मूल लेख भी दिए गए हैं जो पेरियार की ईश्वर और धर्म सम्बन्धी अवधारणा को स्पष्ट करते हैं। दूसरे खंड में पेरियार की विश्व-दृष्टि से सम्बन्धित लेख दिए गए हैं जिनमें पेरियार बताते हैं कि दर्शन क्या है और समाज में उसकी भूमिका क्या है? इस खंड में वह ऐतिहासिक लेख भी शामिल है जिसमें पेरियार ने विस्तार से विचार किया है कि भविष्य की दुनिया कैसी होगी?

पेरियार की बहुचर्चित कृति ‘सच्ची रामायण’ हिन्दी में पहली बार 1968 में छपी थी। उस किताब को लेकर तमाम विवाद हुए। हिंदुओं की धार्मिक भावना को आहत करने के आरोप भी लगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने उस पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया और पुस्तक की सभी प्रतियों को ज़ब्त भी कर लिया। उस किताब को प्रकाशित करनेवाले ललई सिंह यादव ने प्रतिबन्ध और ज़ब्ती को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। वे हाईकोर्ट में मुक़दमा जीत गए। सरकार ने हाईकोर्ट के निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 16 सितम्बर 1976 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सर्वसम्मति से फ़ैसला देते हुए राज्य सरकार की अपील को ख़ारिज कर दिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में निर्णय दिया। 2007 में ‘सच्ची रामायण’ को लेकर जब सवाल खड़ा किया गया तो उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि बसपा तथा सरकार का पेरियार की ‘सच्ची रामायण’ की बिक्री से कोई लेना देना नहीं है। बसपा द्वारा पेरियार से राजनीतिक दूरी बनाने का विवरण प्रमोद रंजन ने ‘हिन्दी पट्टी में पेरियार’ शीर्षक सम्पादकीय टिप्पणी में दिया है। रामायण को पेरियार एक राजनीतिक ग्रन्थ मानते थे। उनका कहना था कि इसे दक्षिणवासी अनार्यों पर उत्तर के आर्यों की विजय और प्रभुत्व को जायज़ ठहराने के लिए लिखा गया। पेरियार द्वारा राम की कथा का यह मूल्यांकन और पाठ एक नई दृष्टि से उस कथा को समझने का प्रयास है। हिन्दी में आयीं ये किताबें इस दृष्टि से बेहद तात्पर्यपूर्ण हैं कि इन्हें पढ़ने के बाद ही पाठक जान सकेंगे कि तमिलनाडु में पेरियार के विचारों के कारण ही एक प्रगतिशील समावेशी समाज बना है। पेरियार के विचारों से प्रेरणा लेने की बहुत सारी चीज़ें हैं और ज़ाहिर है, उसका प्रयोजन भी है। हिन्दी पट्टी में तो सर्वाधिक प्रयोजन है क्योंकि हिन्दी समाज जातियों में बँटा है। अंत में, इन किताबों ने हिन्दी में पेरियार पर सामग्री की कमी को दूर किया है, इसके लिए प्रमोद रंजन बधाई के सर्वोत्तम हक़दार हैं।

[महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्विद्यालय में मास-कम्युनिकेशन के प्रोफ़ेसर कृपाशंकर चौबे हिन्दी के प्रमुख आलोचकों व निबन्धकारों में से एक हैं। सम्पर्क : [email protected]]

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