गर्मियों में एक विद्यालय में शिक्षकों में ‘चाय और फल’ विषय पर तुलनात्मक बहस छिड़ गई। बुद्धिजीवियों ने चाय और फल की परस्पर तुलना कर पक्ष-विपक्ष में अपने तर्क प्रस्तुत किए। कोई चाय के महत्व को बताते हुए उसे सर्वप्रिया, गुणवान, उत्साहवर्द्धिनी, आलसभंजक के रूप में प्रस्तुत कर रहा था तो कोई चाय को कैंसरकारक, नशा, बदबू व शरीर को खोखला कर देने वाले पेय के रूप में अपने तर्क प्रस्तुत कर रहा था। फिर भी स्वास्थ्य और दीर्घायु को मद्देनजर रखते हुए फलों का पक्ष प्रबल रहा। कुछ वरिष्ठ शिक्षकों के विरोध के अतिरिक्त सब फलों के पक्ष में थे। अतः सम्पूर्ण स्टाफ के लिए एक क्रांतिकारी निर्णय लिया गया कि अब से हम मध्यावकाश (रिसेस) में चाय की जगह मौसमी फल खाया करेंगें। चाय क्लब की जगह फ्रूट क्लब बना दिया गया।
अवधेश को फ्रूट क्लब का अध्यक्ष बनाया गया और फल लाने की जिम्मेदारी दैनिक रूप से अलग-अलग शिक्षकों को सौंपी गई। सोमवार को जतिन, मंगल को इमरान, बुधवार को सुमित्रा, वीरवार को गुरमीत, शुक्रवार को जैस्मीन और शनिवार को नवनियुक्त शिक्षक चंद्रभान को। और उत्साहवर्द्धन में सबकी क्रमशः प्रसंशा हुई। जतिन के लाए हुए 75 रूपये किलो के हिसाब वाले 5 किलो लाल-लाल सेब, इमरान द्वारा लाए गए 70 रूपये किलो के हिसाब वाले 5 किलो रसीले आम के समक्ष सुमित्रा द्वारा लाए गए 40 रुपये दर्जन के हिसाब से तीन दर्जन केलों ने सुमित्रा को कुशल ग्रहिणी साबित किया। गुरमीत भी 150 रूपये के चार बड़े पपीते लेकर आया, वहीं जैस्मीन 200 रूपये की ढाई किलो लीची लेकर आई! लीची सबकी मनपसंद रहती हैं तो सब जैस्मीन के मुरीद हुए।
अब शनिवार को बारी थी नवनियुक्त शिक्षक चंद्रभान की। वह भी 5 किलो खरबूजे लेकर आया। लेकिन इतने मंहगे? 300 रूपये के? कुछ ने उपहास बनाया, कुछ ने कहा कि खरबूजा नया-नया है इसलिए मंहगा तो होगा ही। विषय की गरमाहट को देखते हुए फ्रूट क्लब के अध्यक्ष अवधेश ने इस विषय पर चंद्रभान को उसके विचार रखने के लिए आमंत्रित किया।
चंद्रभान ने शालीनता से बताना आरम्भ किया – “आदरणीय फ्रूट क्लब अध्यक्ष व सभी साथियों को मेरा प्रणाम। आज जब मैंने खरबूजे खरीदे तो मुझे लग ही रहा था कि आज क्लब में जिज्ञासाएं जन्म लेंगी। तो मैं आपकी जिज्ञासाओं के उत्तर में बताना चाहता हूँ कि जब मैं आज फल खरीदने के लिए निकला तो सोचा कि लगभग सभी फल तो आप भोग चुके हैं।” (सब हँसने लगे) “मेरा मतलब फलों के राजा आम से लेकर फलों की रानी लीची तक। तो मैंने बहुत विमर्श करने के बाद निर्णय किया कि कोई विशेष फल आपको खिलाया जाए। सभी जगह गया तो लगभग वही फल देखने को मिले जो आप भोग चुके हो। अंत में मैंने फैसला किया कि मैं आज आपके लिए आम के रस वाली कॉलड्रिंक्स ले चलता हूँ।”
“मैं दुकान पर गया तो देखा एक बड़ी बोतल का रेट 95 रूपये लिखा था व छोटे अक्षरों में साफ-साफ लिखा था कि इसको बनाने में आम का प्रयोग नहीं किया गया है, केवल बनावटी फ्लेवर डाला गया है। फिर भी मैंने हिसाब लगाया पाँच बोतलों का 475 रूपये! मैंने दुकानदार से मोलभाव किया कि भैया 70 की लगा लो, तो दुकानदार हँसने लगा। मैंने कहा कि 80 की लगा लो। दुकानदार ने कहा कि पहली बार खरीद रहे हो क्या? उसने समझाया कि ब्रांडेड चीजों पर बार्गेनिंग नहीं होती।”
“मैं किंकर्त्तव्यविमूढ़ स्थिति में था। मैंने दुकान से विदा ली और सोचा आम ही खरीद लेता हूँ। तभी एक फेरी वाला बूढ़ा व्यक्ति आवाज लगा रहा था खरबूजे ले लो खरबूजे! तब मुझे खरबूजों से बेहतर विकल्प कुछ नहीं दिखा। मैंने उससे दाम पूछा तो वो बोला 60 रूपये किलो है बाबूजी। चखकर देखिए! खाकर देखिए। चीनी जैसा मीठा है। मीठा न निकले तो आज ही बेचना बंद कर दूँ। उसने एक खरबूजा काटकर खिलाया। सच में बहुत मीठा था। फिर उसने कहा कि जिस पर हाथ रख दो वही चखा दूँगा। बताइए कितना तोल दूँ। मैंने कहा कि मुझे ज्यादा लेने हैं कम लगा लो। वो बोला कितना? मैं बोला 40 लगा लो। वो बोला गरीब आदमी हूँ बाबूजी 55 लगा देता हूँ। मैंने फिर कहा देख लो! वो बोला ठीक है 50 लगा सकता हूँ। मैंने फिर कहा मँहगा है। वह बोला अच्छा बाबूजी चलता हूँ। तब मैंने कहा अच्छा ठीक है 50 के हिसाब से पाँच किलो तोल दो।”
“उसने खुशी-खुशी तराजू पर बट्टे चढ़ाने शुरू कर दिए। इधर मैं सोच रहा था कि वह कॉलड्रिंक जो आम के रस के वहम में मुँह माँगे दाम में अंधाधुंध बिक रही है, न तो वह चखाई जाती है, न ही मोलभाव कम किया जाता है और एक ये है जो खरीदने से पहले चखाता भी है और मोल भाव भी कम कर लेता है। इसकी चालाकी केवल ग्राहक की संतुष्टि तक की है और पेयपदार्थ वालों की चालाकी केवल धन लूटने की।”
“जब उसने खरबूजे तोल दिए तो मैंने बिना किसी लाग-लपेट के उसे वही दाम चुकाया जो उसने शुरू में बोला था। 60 रूपये किलो। वह बहुत खुश हुआ। और दुआ भी देने लगा।”
“तो मैं आप सबको बताना चाहता हूँ कि वह बूढ़ा शौक या व्यापार चलाने के लिए फल नहीं बेच रहा होगा। उसकी आर्थिक स्थिति व आवश्यकता ने उसे ऐसा करने पर मजबूर किया होगा। ऐसे लोग चोरी, फरेब, ठगी नहीं जानते। पैसों की अहमियत किसी की जरूरतों में काम आने से है। आपने जो ये मीठे खरबूजे खाए हैं, ये मिठास अपनेपन और दुआओं की है। यदि मुझसे गलती हुई है तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ व मँहगे खरबूजों की पूर्ति के लिए मैं शुल्क चुकाने के लिए भी तैयार हूँ। इसी के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ। धन्यवाद।”
कुछ देर तक सभा में चुप्पी छा गई। लगभग सब भावुक हो चुके थे। सबने जोर-जोर से तालियाँ बजाकर चंद्रभान के फैसले का स्वागत किया।