दुनिया के नामचीन फ़ोटोग्राफ़र
भटकते हैं
भूखे-नंगे लोगों की बस्ती में
और उन अभावग्रस्त लोगो में से
एक चेहरा चुनते हैं
ऐसा चेहरा, जो निर्दिष्ट कर दे
सारी कहानी उस बस्ती की,
उसके लोगों की,
उसकी जैसी बहुत-सी बस्तियों की

युद्ध शरणार्थी,
अकालग्रस्त, दंगा पीड़ित,
नंगे-भूखे बच्चे की दुहाई दे
कार के बाहर हाथ फैलायी औरत—
ऐसे ही चन्द दृश्य तलाशते हैं वे

उतारकर ले जाते हैं
किसी का जीवन
एक अदद कैमरे में,
बदले में दे जाते हैं
एक दिन या
हद-से-हद एक हफ़्ते की रोटी

उस फ़ोटो से
कितने ही पुरस्कार
कितना सम्मान-धन
फ़ोटोग्राफ़र पर बरसता है
पर उस चेहरे को उसका हिस्सा
देने नहीं जाता वह!
कौन माथा-पच्ची करे और क्यों?

फटेहाल चेहरे की कहानी नहीं बदलती
निर्दिष्ट बस्ती की कहानी दीगर बात है

भिखारी, दीन-हीन
अपने फटे चीथड़ों में
ख़ज़ाना समाए हैं;
जो बेचने की तरकीब जानते हैं
उन्हें लूट ले जाते हैं,
बड़े सस्ते में…

देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।