लोग
रौशनी से डरते हैं
सच से कतराते हैं
टेसू कहाँ फूलें?
देह
देह के आ जाने को डरती है
कोहबर घर से कतराती है
गुलाब कहाँ उगें?
गीत के पोखर
आदमी से डरते हैं
अपनी ही मेंड़ से कतराते हैं
कमल कहाँ झूमें?
आओ
जुगनू की छाँव में
प्यार करें और अलग हो जाएँ
एक बड़ी लड़ाई
छिड़ने वाली है!
रामनरेश पाठक की कविता 'महुए के पीछे से झाँका चाँद'