फूल सी हो फूलवाली!
किस सुमन की साँस तुमने
आज अनजाने चुरा ली!
जब प्रभा की रेख दिनकर ने
गगन के बीच खींची,
तब तुम्हीं ने भर मधुर मुस्कान
कलियाँ सरस सींची,
किन्तु दो दिन के सुमन से,
कौन सी यह प्रीति पाली?
प्रिय तुम्हारे रूप में
सुख के छिपे संकेत क्यों हैं?
और चितवन में उलझते
प्रश्न सब समवेत क्यों हैं?
मैं करूँ स्वागत तुम्हारा,
भूलकर जग की प्रणाली।
तुम सजीली हो, सजाती हो
सुहासिनि ये लताएँ
क्यों न कोकिल कण्ठ
मधु ॠतु में, तुम्हारे गीत गाएँ
जब कि मैंने यह छटा,
अपने हृदय के बीच पा ली!
फूल-सी हो फूलवाली!
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