फूल सी हो फूलवाली!
किस सुमन की साँस तुमने
आज अनजाने चुरा ली!

जब प्रभा की रेख दिनकर ने
गगन के बीच खींची,
तब तुम्हीं ने भर मधुर मुस्कान
कलियाँ सरस सींची,

किन्तु दो दिन के सुमन से,
कौन सी यह प्रीति पाली?

प्रिय तुम्हारे रूप में
सुख के छिपे संकेत क्यों हैं?
और चितवन में उलझते
प्रश्न सब समवेत क्यों हैं?

मैं करूँ स्वागत तुम्हारा,
भूलकर जग की प्रणाली।

तुम सजीली हो, सजाती हो
सुहासिनि ये लताएँ
क्यों न कोकिल कण्ठ
मधु ॠतु में, तुम्हारे गीत गाएँ

जब कि मैंने यह छटा,
अपने हृदय के बीच पा ली!

फूल-सी हो फूलवाली!

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डॉ राम कुमार वर्मा (15 सितंबर, 1905-1990) हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार और हास्य कवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें हिन्दी एकांकी का जनक माना जाता है। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६३ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इनके काव्य में 'रहस्यवाद' और 'छायावाद' की झलक है।