‘Picasso Ke Rang Padhte Hue’, a poem by Upma Richa

मेरे हाथों में बहती है एक नदी
जाल डाले
मैं पकड़ता रहता हूँ
-दुःख, यातना में डूबा हुआ संसार
-उघड़ी हुई सच्चाइयाँ
-और खोये हुए-से चेहरे
मेरे हाथों को छूकर
बिखर जाती है
एक ठहरी हुई-सी लय
झक सफ़ेद कैनवास पर
मैं खोया रहता हूँ अक्सर
नीले आसमान
पीली धरती
लाल आँखों और
काले अँधेरों के बीच
मेरे आसपास
रंग बहुत है
मुझे बस
थोड़ा-सा पानी चाहिए
ज़िन्दगी को
ज़िन्दगी जैसा दिखाने के लिए…

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उपमा 'ऋचा'
पिछले एक दशक से लेखन क्षेत्र में सक्रिय। वागर्थ, द वायर, फेमिना, कादंबिनी, अहा ज़िंदगी, सखी, इंडिया वाटर पोर्टल, साहित्यिकी आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलेखों का प्रकाशन। पुस्तकें- इन्दिरा गांधी की जीवनी, ‘एक थी इंदिरा’ का लेखन. ‘भारत का इतिहास ‘ (मूल माइकल एडवर्ड/ हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया), ‘मत्वेया कोझेम्याकिन की ज़िंदगी’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ द लाइफ़ ऑफ़ मत्वेया कोझेम्याकिन) ‘स्वीकार’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ 'कन्फेशन') का अनुवाद. अन्ना बर्न्स की मैन बुकर प्राइज़ से सम्मानित कृति ‘मिल्कमैन’ के हिन्दी अनुवाद ‘ग्वाला’ में सह-अनुवादक. मैक्सिम गोर्की की संस्मरणात्मक रचना 'लिट्रेरी पोर्ट्रेट', जॉन विल्सन की कृति ‘इंडिया कॉकर्ड’, राबर्ट सर्विस की जीवनी ‘लेनिन’ और एफ़. एस. ग्राउज़ की एतिहासिक महत्व की किताब ‘मथुरा : ए डिस्ट्रिक्ट मेमायर’ का अनुवाद प्रकाशनाधीन. ‘अतएव’ नामक ब्लॉग एवं ‘अथ’ नामक यूट्यूब चैनल का संचालन... सम्प्रति- स्वतंत्र पत्रकार एवम् अनुवादक