शान्त समय के और शान्त हो
जाने पर पानी में सपाट बादल के
बीच अनेक मुस्कानें खिलती हैं, ये कभी
स्त्रियाँ थीं जिन्हें तैरना पसन्द था
मेरी माँ के वक्ष में एक स्वप्न था
कोई अप्सरा की आयु लिए डूब गई
कोई माँस के प्रकाश में देखते-देखते डूब गई
कोई अपने सतरंगे रक्त की पुकार का असर
देखते डूब गई
सपाट बादल के एक छोर पर बैठे दार्शनिक कह
रहे हैं सब झूठ था, सब भ्रम था
उनके निकट अस्थियों पर काई उग आयी
फिर आकार बना, फिर माँस के खिलते हुए
फूल की गन्ध आयी।
ऋतुराज की कविता 'कवि लोग'