मैं मौसी को टैब पर सबवे-सर्फ़र खेलना सिखा रही थी। पूरे बग़ीचे में भँवरे फुदक-फुदक कर रहे थे। नानी पेड़ों में पानी लगा रही थीं। तभी मुझे अनार की झाड़ी पर एक छोटी-सी नीली चिड़िया दिखी।
“अभी आती हूँ मौसी, आउट मत हो जाना।” वो बार-बार आउट हो जाती हैं, मौसी थोड़ी बुद्धू हैं।
मैं चुपके-चुपके गेंदे की क्यारी पार करके अनार की झाड़ी के पास पहुँची, पर वो चिड़िया उड़कर अमरूद की सबसे ऊँची डाली पर जाकर बैठ गयी।
”चिड़िया का घर कहाँ है मौसी? अनार में या अमरूद में?”
“चिड़िया का जहाँ मन करता है, वहीं चली जाती है।” मौसी मुझे देखकर बोलीं और इतने में आउट हो गयीं। हम हँस-हँसकर लोट-पोट हो गए।
नानी बोलीं: मज़े आ रहे है ना पीहू? यहीं रुक जा नानी के पास, नानी आपके लिए दो छोटे-छोटे ख़रगोश भी ला देगी।
दो ख़रगोश! छोटे-छोटे!
मौसी बोलीं: हाँ, ऐसा हो तो सकता है। हम ख़रगोश को खाना खिलाएँगे और उसे बहुत प्यार करेंगे। फिर अगले हफ़्ते मैं दिल्ली जाऊँगी तो हम साथ में वापस भी जा सकते हैं ट्रेन में। दोनों-दोनों।
मैं और मौसी ट्रेन में! दोनों-दोनों!
नानी बोलीं: और नानाजी आपको बाज़ार ले जाएँगे—रोज़ नये खिलोने दिलाने।
मौसी बोलीं: अरे हाँ हाँ, सही रहेगा। हम डबल-डेकर ट्रेन की खिड़की से अरावली पहाड़, सरसों के खेत, छोटे-बड़े शहर सब देखते हुए, और आइस क्रीम खाते हुए जाएँगे पीहू। रुक जा यहीं।
रोज़-रोज़ नये खिलौने! डबल डेकर में आइसक्रीम… पर इस बार तो मैं मम्मी के साथ बस दो दिन के लिए ही नानी हाउस आयी थी। आज दूसरा दिन था। मैंने मम्मी को देखा।
वो बोलीं, “पर पीहू की छुट्टी थोड़ी है तब तक। रोज़ ऑनलाइन क्लासेज़ होती हैं टैब पर। वो कैसे करेगी?”
“अरे वो तो मैं करा दूँगी ना। ये टैब यहीं छोड़ जाना।” मौसी ने कहा।
“अच्छा फिर तो ऐसे हो सकता है। सच में रुकना है पीहू?”
“बिलकुल! मैं तो ज़रूर रुकना चाहूँगी मम्मी। मैं तो रुकना ही चाहूँगी। बिलकुल, बिलकुल, बिलकुल।” मैंने मम्मी की गोद में जाकर बोला।
“ठीक है।अब तो पीहू बड़ी हो गयी है, पाँच साल की। आज सोमवार है ना, आप पाँच दिनों के लिए रुक जाओ नानी हाउस।”
“पाँच? नहीं, पाँच नहीं मम्मी। मैं एक, दो, तीन, चार, पाँच और छः दिन के लिए रुकूँगी। छः, जितने साल की मैं अब हो जाऊँगी।”
2
दोपहर तक मम्मी ने मेरे कपड़े छोड़कर अपनी अटैची जमा ली थी। नानी ने पापा के पसंद का प्याज़ का अचार भी एक बोट में बांधकर रख दिया था। सब पक्का हो गया था। पर फिर पता नहीं क्यों मम्मी बोली, “बेटा, तेरे पापा से तो पूछ ले एक बार फ़ोन करके।”
पापा ने सुनते ही मना कर दिया।
“पर मुझे रुकना है।”
“नहीं ज़िद नहीं करते। आज ही वापस आजा बेटा।”
“नहीं नहीं नहीं, मुझे यहीं रुकना है!”
“नहीं पीहू, ऐसे मनमानी नहीं चलेगी।”
“ये ज़िद कर रही है। रुकने दो ना।” मम्मी बोलीं।
“इतना नहीं रुक पाएगी। ये सबको परेशान कर देगी वहाँ, अभी छोटी है। मैं बोल रहा हूँ ना, तू वापस ले आ इसे।”
फ़ोन कट गया। मम्मी थोड़ी परेशान थीं—पर मैं नहीं मानी। नानी-नानाजी मम्मी को गाड़ी से दिल्ली छोड़ने निकल गए।
3
अब मैं मौसी को झूला झुला रही थी और मौसी मुझे नीली चिड़िया की कहानी सुना रही थीं कि तभी वो लोग लौट आए।
“आप क्यों लौट आए?”
“बेटा, पापा ग़ुस्सा कर रहे हैं। अभी चलो, हम जल्दी वापस आ जाएँगे।” मम्मी ने कहा।
“पर मैं रह सकती हूँ। मैं बड़ी हो गयी हूँ मम्मी। एक, दो, तीन, चार, पाँच, और अब छः साल की हो जाऊँगी।”
नानाजी बोले: पापा को आपकी याद आएगी, इसलिए बुला रहे हैं। अच्छी बच्ची है ना पीहू। बात मानते हैं बेटा।
“पर मुझे नहीं जाना, नानाजी। एक, दो, तीन, चार, पाँच, और छः, पूरे छः दिनों के लिए मुझे यहीं रुकना है।”
“अगली बार लम्बी छुट्टी के लिए आएँगे पीहू। मान जा बेटा।”
“मम्मी पर आपने ही तो बोला था मैं रुक सकती हूँ। दो-दो ख़रगोश, नये खिलौने, और मौसी के साथ डबल-डेकर में आ सकती हूँ।”
नानी बोलीं: रुक जाने दो न बच्चे को, क्या हो जाएगा? कितना मन है इसका। इस बात पर ज़बरदस्ती क्या करनी?
“हाँ, मैं ले तो आऊँगी इसे संडे तक।”
नानाजी तेज आवाज़ में बोले: तुम लोग समझते नहीं हो ये बातें। नहीं रोक सकते ऐसे।
मम्मी मुझे गोद में उठाने लगीं। मैं भागकर घर के अंदर आ गयी। सबने मुझे कुछ देर ढूँढा पर फिर उन्हें मैं टेबल के नीचे मिल गयी।
“मुझे वापस नहीं जाना। मुझे यहीं रहना है।” मैंने मौसी को देखा।
लेकिन मौसी भी चुप-चाप खड़ी रहीं। मेरी बात किसी ने नहीं सुनी। अब मुझे रोना आ रहा था। मुझे चिड़िया की पूरी कहानी भी सुननी थी।
तभी नानी बोलीं: अच्छा मैं अपनी प्यारी पीहू को अभी रास्ते में आइसक्रीम दिलाऊँगी। एक नहीं—पूरी एक, दो, तीन, चार, पाँच, और छः आइसक्रीम दिलाऊँगी! फिर चलेगी ना?
“छः आइसक्रीम?” मैंने मौसी, मम्मी, नानी, और नानाजी को देखा। वो सब मुस्कुरा रहे थे।
मैं मान गयी।
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