‘Pita Ki Yaad’, a poem by Vivek Chaturvedi

भूखे होने पर भी
रात के खाने में
कितनी बार,
कटोरदान में आख़िरी बची
एक रोटी
नहीं खाते थे पिता…

उस आख़िरी रोटी को
कनखियों से देखते
और छोड़ देते हम में से
किसी के लिए
उस रोटी की अधूरी भूख
लेकर जिये पिता
वो भूख
अम्मा… तुझ पर
और हम पर क़र्ज़ है।

अम्मा.. पिता कभी न लाए
कनफूल तेरे लिए
न फुलगेंदा, न गजरा
न कभी तुझे ले गए
मेला-मदार
न पढ़ी कभी कोई ग़ज़ल
पर चुपचाप अम्मा
तेरे जागने से पहले
भर लाते कुएँ से पानी
बुहार देते आँगन
काम में झुँझलायी अम्मा
तू जान भी न पाती
कि तूने नहीं दी
बुहारी आज।

पिता थोड़ी-सी लाल मुरुम
रोज़ लाते
बिछाते घर के आसपास
बनाते क्यारी
अँकुआते अम्मा…
तेरी पसन्द के फूल।

पिता निपट प्रेम जीते रहे
बरसों बरस
पिता को जान ही
हमें मालूम हुआ
कि प्रेम ही है
परम मुक्ति का घोष
और यह अनायास उठता है
मुँडेर पर पीपल की तरह।

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Striyaan Ghar Lautti Hain - Vivek Chaturvedi

विवेक चतुर्वेदी
जन्मतिथि: 03-11-1969 | शिक्षा: स्नातकोत्तर (ललित कला) | निवास: विजय नगर, जबलपुर सम्पर्क: [email protected]