एड्रिआटिक जेस विश्व पटल पर उभरते युवा अल्बेनियन कवि और ब्लॉगर हैं। उनका जन्म परमेट अल्बानिया में 1971 में हुआ, जहाँ अपनी स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने आगे टिराना विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। प्रस्तुत हैं एड्रिआटिक जेस की कुछ कविताएँ, जिनका हिन्दी में अनुवाद पंखुरी सिन्हा ने किया है।
तुमने चुरा लिया है मेरा ग्रीष्म काल
आह, सर्दियों के मौसम ने
इस बार, दो टुकड़े
फाड़ दिए जैसे
माह जुलाई के
बीच से
ठण्डे आँसुओं के
बिना रुके
बहते रहने की तरह
स्वस्थ हो गई
वो सारी पत्तियाँ
जिन्होनें चूमा था
सूरज को
लोगों को निकालने
पड़े, जाड़ों के कपड़े
बन्द डब्बों से
सड़कों पर लोग
आज़मा रहे हैं
केवल अपना भाग्य
दौड़ रहे हैं
नीचे अपने छाते के
पौधे प्रसन्नता से
मिटा रहे हैं
प्यास अपनी
पी रहे हैं
घूँट-घूँट
जैसे जाड़े की नमी
आती हुई
ऊपर से
एक बर्फ़ीली-सी हवा
जैसे खो देती है
अपना नंगापन
मैं नहीं जानता
कहाँ हुई थी
उलझन सूरज को
शायद उसी जाड़े के साथ
उनके पास कोई कारण हो
गर्मियों के कुछ दिनों के लिए
उधार!
दुनिया की सारी तरलताओं का प्रतीक माँ (मातृ-दिवस के लिए)
आज चाँद ने वादा किया मुझसे
पता है मुझे, वो निभाता है
अपने शब्दों की मर्यादा!
जब गुज़रने के लिए
उस टापू पर से
माँ ने हमेशा कहा पास रहने को!
अब चाँद बातें करो
मेरी माँ से
कुछ शब्दों के साथ!
और कहो उससे
मैं अब भी कितना प्यार करता हूँ उससे!
कह सकता हूँ मैं भी
लेकिन, पता नहीं कितना
सुन सकती है मुझे!
उस दुनिया में जहाँ वह चली गई
देवदूतों-सी है उसकी आत्मा
उसकी आँखें, चील की आँखों-सी
ऊपर चाँद में, खिंची हुईं!
विदा हो चुका है मेरी माँ का दिल
जब से चली गई उसकी आत्मा
तारों के पास, लेकिन मैं महसूसता
सुन सकता हूँ उसे
जब सोता हूँ मैं
वह होती है ठीक मेरे
सिर के ऊपर!
चाँद जाओ मत अभी, ठहरो थोड़ी देर
बात करो मेरी माँ से और भेजो
उसका कोई शब्द मुझ तक!
आज ऊपर आसमान की ओर
उठाये अपना सर
मैं चाहता हूँ देखना उसे ज़िन्दा!
इस दुनिया में अगर होती नहीं माँएँ
सूखी लकड़ी-सी होती यह दुनिया
माँ ही इस सृष्टि की तरल शक्ति है
उसके हाड़-माँस, ख़ून समान
जो इस दुनिया को किसी फूल की तरह
खिलाये रखती है!
यादें
जो खोती हैं मेरे साथ
बेतरह याद आती हैं माँ
रोता है मेरा दिल
उनके लिए
वह ख़ुश कर देती थीं मुझे
मेरी सुबहों को
कितनी आसानी से!
पौ फटते-फटते!
पूरे चाँद की तरह
रातें भी चूमती थीं
मस्तक मेरा!
कितना छोटा महसूस करता हूँ मैं
खोया हुआ इन बीते वर्षों में
याद आता है हर शब्द
प्यार की हर गलबाही
इतना ख़ाली हूँ मैं
तुम्हारे लिए दर्द में
मैं देखना चाहता हूँ तुम्हारी आँखें
तुम्हारी पेशानी पर खिंचती झुर्रियों की एक-एक रेखा
चाहता हूँ आराम करना
अपना सिर तुम्हारी गोद में रखकर
सो जाने दो इस पूरी दुनिया को
सुनते हुए तुम्हारी लोरी!
कितनी याद आती है
तुम्हारी आवाज़ मुझे
मैं भूलना नहीं चाहता
पल-भर को भी
ओझल नहीं होता
वह ख़ौफ़नाक लमहा
मेरे दिमाग़ से
कुछ कहना चाहती थीं तुम
लेकिन बोल नहीं सकती थीं
उड़ गई आकाश में
तुम्हारी ज़िन्दगी
दो टुकड़े करते हुए
हमें भी
तरसता हुआ छोड़कर हमें
शब्दों के लिए तुम्हारे!
तुम्हारी आँखों में उग आए
आँसू की उस बूँद के लिए
जो होती थी हमेशा
मुझसे दूर होते
दरवाज़े पर
जब कहती थीं तुम
हमेशा प्यार करूँगी
तुमसे मेरे बेटे
तुम्हारे क़दमों की आहट के लिए
मैं जब भी उतरता था
सीढ़ियों से नीचे
मिलती थीं तुम
बाँहें फैलाए
मेरे इंतज़ार में
हर द्वार पर थीं तुम
और हर कहीं
आऊँगा मैं तुम्हारे पास
और बातें करूँगा तुमसे
जैसे किया करते थे हम
जब तुम थीं यहाँ
मैं देखूँगा आँखों में तुम्हारी
तुम्हारी क़ब्र के भीतर झाँककर
बैठकर अपने घुटनों के बल
छूकर वह मिट्टी और उन तमाम सालों को
जब चले हम साथ-साथ
ओह मेरी माँ
मैं कितना चाहता हूँ
बातें करना…
पंखुरी सिन्हा द्वारा अनूदित फ़्रेके राइहा की कविताएँ