Poems: Anamika Chakraborty

मन्नत का धागा

तुम्हारे आलिंगन
से अब तक
मुक्त न हो पायी मैं।

तुम्हारी देह की गंध
अब तक बाँधे हुए है मुझको,
तुम्हारा नमकीन स्पर्श
ठहरा है अब तक
नमी लिए अधरों पर

तुम न ठहरे
परन्तु ठहर गया सब कुछ
शिराओ में रक्त,
आँखों में आँसू

चिरस्थायी हो गई मैं
तुम्हारी प्रतिक्षा को
मन्नत का धागा बनाकर।

भाग्य रेखा

समय के अँधेरे में उँगलियाँ
हथेली की रेखाओं को
सहलाती हुई ढूँढती है,
तुम्हारे होने की रेखा

गिनना चाहती हैं उनमें पड़ी दरारें
कितनी दरारें,
कितनी गहरी

जैसा कि तुमने कहा था
सबसे गहरा प्रेम है
जिसे नाप नहीं सकती पृथ्वी भी
जो होती है
भाग्य की रेखाओं के बीच
एक रेखा बनकर
हमारी हथेलियों में।

दुःख की मात्रा

रात जितनी गहरी उतरती है
दुःख की मात्रा उतनी बढ़ती जाती है
इस दुःख में, सुख इतना है कि
इसमें जितना तुम डूबे हो
उतना ही मैं भी डूबी हूँ
इस पीड़ा के यात्रा चक्र में,
विश्वास के जिस आनंद में तुम हो
उसी विश्वास के आनंद में, मैं भी हूँ

धनुष

तुम अपने धनुष जैसे होंठो की प्रत्यंचा से
छोड़ो एक बाण ऐसा प्रवल वेग से
जो भेद के हृदय को,
पुलकित कर दे उसका रोम रोम

मन ठहर जाए व्याकुल नदी की धार में
डब डब करती नाव सी
चूम ले नाविक अपनी पतवार को
पंचअमृत की अंजली सी

लगे किनारे बालू के कण कण से लिपटे
जैसे स्वप्न सर्प ने रची हो लीला
रति क्रीड़ा सी शीतल जल की आँच में

जल जल के जल हो जाए
तुम्हारे धनुष जैसे होंठो के
दोनों किनारों की छोर से

दृश्य हो उत्पन्न दृष्टि में
अभिराम कुटिल मुस्कान सी।