साधारण आदमी

थोड़ा अजीब होता है शायद
एक साधारण आदमी होना
और कुछ साधारण से सपने देखना
जैसे भरपेट खाना
सुकून भरी नींद
या निहारना बारिश को बिना छत की चिंता किए।

थोड़ा अजीब होता है शायद
बिना दुनिया बदलने की परवाह किए
घिसटती हुई ज़िन्दगी से उठकर
महज़ कुछ क़दम चलने की ख़्वाहिश रखना
दोनों बाँहे फैलाए।

अजीब होता है
बस जीते जाना ज़िन्दगी को
चुपचाप बिना आवाज़ किए
और मर जाना एक रोज़।

और उससे भी ज़्यादा अजीब यह
कि कैमरे की धुंधली तस्वीर में
तुम्हारी मुर्दा ख़ामोशी देखकर
दुनिया चीख़ उठे
मगर नज़रअंदाज़ करती रहे
तुम्हारे जैसे ख़ामोश साधारण आदमियों को।

एक साधारण आदमी होना,
बहुत अजीब होता है, शायद।

प्रेम

युद्ध, विस्थापन, और मृत्यु
दुनिया-भर की तमाम सभ्यताओं के
लघुत्तम समापवर्तक की गणना के प्रतिफल में प्राप्त
तीन अचर, अभाज्य संकल्पनाएँ हैं।

दुनिया के तमाम धर्मग्रन्थ
प्रेम से कहीं अधिक
हिंसा-प्रतिहिंसाओं की कथाओं से हैं आत्प्लावित।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है—
एक अश्लील अनुवाद है
इसमें बड़ी सफ़ाई से ढँक दिया गया है
हिंस्त्र पाशविकता को,
समाज तले।

सत्य, अहिंसा, सत्कर्म
अपवाद से अधिक कुछ नहीं
पिछले हज़ार वर्षों के इतिहासों में
इसकी तस्दीक़ होती है।

दुनिया-भर की तमाम सभ्यताओं के पतन का गुणनखंड करने पर
भाजक के रूप में प्राप्त होने वाला चर
लोभ है;
यह सभ्यताओं को विभाजित करता है
और शेष शून्य बचता है।

मैं, तुम, हम सब
ध्वंस के एक दीर्घजीवी रासायनिक समीकरण के
उत्प्रेरकों में शामिल हैं
हमारा अस्तित्व प्रतिक्रिया को तेज़ भले कर दे
रोक नहीं सकता।

मेरे समय के लोगों
बेहतर होगा कि हम यह मान लें
कि अपने तमाम तत्वों समेत यह संसार
हमारे अस्तित्व को कालजयी बनाने के उद्देश्य से नहीं रचा गया
और ध्वंस की इस अवश्यम्भावी रासायनिक प्रक्रिया की गति को
मंद करने के यत्न करें।

मेरे समय के लोगों
बेहतर होगा कि हम यह जान लें
कि प्रेम एकमात्र ऐसा तत्व है
जो इस वीभत्स प्रक्रिया के लिए मंदक बन सकता है।
हालाँकि यह इतना आसान नहीं
क्योंकि प्रेम के इस स्वरूप को
लोभ, स्वार्थ, छुद्रता से परे होना होगा
प्रकृति से होना होगा,
विश्व की प्रत्येक इकाई से जुड़ना होगा।