यात्री
भ्रम कितना ख़ूबसूरत हो सकता है?
इसका एक ही जवाब है मेरे पास
कि तुम्हारे होने के भ्रम ने
मुझे ज़िन्दा रखा
तुम्हारे होने के भ्रम में
मैंने शहर लाँघे
नदियाँ पार कीं
पहाड़ चढ़ा
तुम्हारे होने के भ्रम ने
मुझे यात्री बना दिया।
कुछ दिन और
कुछ दिन
हाँ, कुछ दिन और
मुझे महसूस करना है
टूटकर बिखरने का दुःख
हाँ, कुछ दिन और
मैं देखना चाहता हूँ
सूरज को डूबते हुए
कुछ दिन और
मुझे लड़ना है दुःस्वप्नों से
कुछ दिन और
टालनी है नींद
कुछ दिन और
जुड़ा रहूँगा तुम्हारी गंध से
हाँ, कुछ दिन और
चिपका रहूँगा तुम्हारी याद से
अगले पतझर का इंतज़ार है मुझे
अगले पतझर
झरकर
मैं विदा लूँगा।
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