लुचिल्ला त्रपैज़ो स्विस इतालवी कवयित्री हैं। उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और उनकी रचनाएँ कई भाषाओं में अनूदित भी हो चुकी हैं।
मूल कविताएँ: लुचिल्ला त्रपैज़ो
अनुवाद: पंखुरी सिन्हा
बरनेशा या आख़िरी प्रतिज्ञा बद्ध कुँवारी कन्याएँ
एक इशारा और ज़मीन पर गिरती है
तुम्हारी स्कर्ट, उतरता है तुम्हारा लहँगा
तुम्हारे स्त्रीत्व का आख़िरी
निशान! अवशेष! तुम्हारी बाग़ी
अवज्ञा भरी चोटी, करती है समर्पण
तुम्हारे क़दमों में! गौरव-पूर्ण
ताम्बई प्रतिबिम्बों के साथ! कच्ची उम्र के कसाव से तने हैं वक्ष तुम्हारे
देह का फल कच्चा बिल्कुल! तुम छूती हो
अनार-सी अपनी त्वचा, और कसकर बांध लेती हो अपने उभार!
दो क्रूर पट्टियाँ, अवरुद्ध करती हैं तुम्हारी
साँसों को! मोड़कर रखा हुआ है
दुल्हनों वाला वह नक़ाब, वह घूँघट
जो कभी था तुम्हारी माँ का!
(एक सपना सेब और दालचीनी
का, कपूर की जैसे निगरानी में)
शीशे का एक छोटा-सा टुकड़ा
प्रतिबिम्बित करता है तुम्हारा काँपता हुआ चेहरा!
बिस्तर पर, तुम्हारी पुरानी पतलून
कर रही है तुम्हारा इन्तज़ार!
दूर कहीं, आवाज़ों का एक कोरस!
अफ़सोस भरा, शायद कोस रहे हैं तुम्हें ही!
घर के सबसे बड़े कमरे में आराम कर रहे हैं तुम्हारे पिता!
अमरन्थ फूलों वाला स्कार्फ़ छिपा लेता है
उस जंगली आखेट के फूल! तुम अकेली हो अपने घर
परिवार, देश की प्रतिष्ठा की रखवाली में!
कल अपने अग्रजों के आगे, बर्फ़-सी ठण्डी आँखें लिए
तुम नकार दोगी, अपना स्त्रीत्व!
कभी नहीं फिर क़ुबूल सकोगी, अपने औरताना सपने!
एक लड़ाई है यह
एक अदला-बदली तुम्हारी आज़ादी के एवज़ में!
पसीने और राकी की धुआँदार कोठरियाँ, कर रही हैं तुम्हारा इन्तज़ार!
बाँझ बना दी गई
तुम्हारी कोख हमेशा के लिए!
पहाड़ों और घाटियों के नियम, क़ानून, क़ायदे
हड़बड़ाती, तेज़ बहती नदियों की सब रस्में
आदतें, ख़ून से लिखी गई हैं अनादि काल से!
अकेली, एक कुँवारी कन्या केवल छह बैलों जितनी क़ीमती है
कल एक मर्द बन जाओगी तुम! प्यार के लिए है
एक तरफ़ तुम्हारी लम्बी उच्छ्वास
और उदासी तुम्हारी, तब जब देख नहीं रहा हो चाँद!
ट्रांसह्यूमेन्स: घुमन्तु गड़ेरिया जीवन
नदियों के संगम को पार करने का वह बिन्दु
जहाँ लोग पार करते हैं सरहदें और पक्षी भी
ऊँट, हाथी और पाट के बोरे
फटे हुए आसमान की तीखी छायाओं तले
औरतें टोकरियों में उठाये चलती हैं
अपने पिता की चीख़ें और चाक़ू
बच्चों की आँखों में दुहराता है
प्रेम का हल्का आभास
किसी दूसरे क्षितिज पर
जाने किन दूरस्थ मान्यताओं
भ्रान्तियों की राह पर
एक घुमावदार नस है जैसे
इतिहास, खोदता गहरी खाइयाँ
हर कुछ के चेहरे पर!
कमल के फूलों का एक अर्घ्य
पोंछ देने के लिए नुकीले ख़ौफ़
और बोने, उगाने लगते हैं हम
बालू पर सपने, काटने भी
सपनों की एक असल फ़सल!
हल्की-सी एक झुर्री हवा में
कहाँ छोड़ती है कोई निशान!
ऐड्रियाटिक जेस की कविताएँ