Poems: Mahima Shree
लड़की
क्या चाहती है
लड़की?
सपने बुनने का अधिकार पा तो लिया
लड़-लड़कर
अब तैयार है
सपनों को संजोकर
आनंदोत्सव मनाने के लिए,
लड़की
नहीं जानती
तेज़ धार पर चल रही है।
सम्भलना पड़ेगा
ताज़िन्दगी!
क़दम फूँक-फूँककर रखना पड़ेगा
सपनों के पूरे होने तक!
उत्सव तो
अगले जन्म में नसीब होगा
या
कई जन्मों के बाद,
अभी तो उसे
यूँ ही
उत्सव का भ्रम है!
मायाजाल
हमने अपने अंदर बना डाले हैं
अजीब से दायरे
अनेक बँधन
अनेक विचार
हमने पाल रखी हैं अजीब-सी मान्यताएँ
अनेक नियम
अनेक प्रथाएँ
इनसे निकल नहीं पाते
घूमते रहते हैं उसी में
बाहर जा नहीं पाते
हमने कहीं भी नहीं खोले रखे हैं दरवाज़े
डाल रखे हैं दरवाज़ों पर ख़ुद ही बड़े-बड़े ताले
खो बैठे हैं उनकी चाबियाँ
नहीं ढूँढने जाते उन्हें
सोच रखे हैं कई बहाने
बाहरी हवाएँ नहीं आतीं
मौसम भी नहीं बदलते
सूरज की किरणें भी लौट जाती हैं टकराकर
दो पल ख़ुश हो जाते हैं
अपने इंतज़ामात पर
पर अगले पल ही छा जाता है घनघोर अँधेरा
मुश्किल होता है ये जानना
दिन है या हो गयी है रात
सच है
या है कोई मायाजाल!