निकानोर पार्रा चिलियन कवि हैं। प्रस्तुत कविताओं का हिन्दी में अनुवाद देवेश पथ सारिया ने किया है। कविताएँ लोगोज़ जर्नल पर उपलब्ध लिज़ वर्नर के अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित हैं।
कुछ वैसा ही
पार्रा हँसता है जैसे
उसे नरक की सज़ा मिली हो
पर कवि कब नहीं हँसते थे?
कम-से-कम वह अपना हँसना स्वीकारता है
कवि वर्षों गुज़ार देते हैं
या कम-से-कम प्रतीत होते हैं गुज़ारते हुए
बिना किसी परिकल्पना के
जैसे सब कुछ घटित हो रहा अपने आप
अब पार्रा रोता है
भूलकर कि वह एक प्रतिकवि है
…
तनाव मत लो
कोई नहीं पढ़ता आजकल कविताएँ
अच्छी या बुरी, कैसी भी
…
चार कमियों के लिए मेरी ओलिफ़िया मुझे कभी माफ़ नहीं करेगी—
उम्रदराज़
तुच्छ
साम्यवादी
और साहित्य का राष्ट्रीय पुरस्कार
<मेरा परिवार शायद तुम्हें माफ़ कर भी दे
पहली तीन कमियों के लिए
पर चौथी के लिए हरगिज़ नहीं>
…
मेरी लाश और मेरी
परस्पर समझ बड़ी अद्भुत है
मेरी लाश पूछती है: क्या तुम ईश्वर में यक़ीन रखते हो?
और मैं दिल खोलकर मना करता हूँ
मेरी लाश पूछती है: क्या तुम सरकार में यक़ीन रखते हो?
और मैं हथौड़ी और दराँत से जवाब देता हूँ
मेरी लाश पूछती है: क्या तुम पुलिस में यक़ीन रखते हो?
और मैं उसके मुँह पर मुक्का जड़ देता हूँ
तब वह ताबूत से उठ खड़ी होती है
और हम बाहों-में-बाहें डाल वेदी की तरफ़ जाते हैं
…
गृह कार्य
एक साॅनेट बनाओ
जो निम्नांकित पंचपदी पद्य से शुरू होती हो—
मैं तुमसे पहले मरना चाहता हूँ
और जो समाप्त होती हो इस पर—
मैं चाहूँगा कि पहले तुम मर जाओ
…
तुम जानते हो क्या हुआ
जब मैं घुटनों पर था
सलीब के सामने
ईसा के घावों को देखता हुआ?
वह मुझे देख मुस्कुराया और आँख मारी उसने!
पहले मैं सोचता था कि वह कभी नहीं हँसता:
पर हाँ, अब मुझे यक़ीन हो गया है
…
एक घिसा हुआ बूढ़ा
फेंकता है लाल कारनेशन के फूल
अपनी प्यारी माँ के ताबूत पर
तुम सुन क्या रहे हो, सज्जनों और देवियों—
एक बूढ़ा शराबी
लाल कारनेशन के रिबन
बम की तरह फेंक रहा है
अपनी माँ के ताबूत पर
…
मैंने धर्म के लिए खेलों को छोड़ा
(मैं हर रविवार प्रार्थना सभा में जाता था)
मैंने धर्म को छोड़ा कला के लिए
कला को गणितीय विज्ञान के लिए
छोड़ता रहा अंततः आलोक प्राप्ति तक
और अब मैं बस गुज़रता हुआ कोई हूँ
जिसका सम्पूर्ण या अंशों में कोई विश्वास नहीं
किसी राष्ट्रपति की मूर्ति बचेगी नहीं
उन सटीक कबूतरों से
क्लारा सैंडोवल हमसे कहती थी—
वे कबूतर जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं!
पेरुमल मुरुगन की कविताएँ