Poems: Prita Arvind

दंगे

दिल्ली उन्नीस सौ चौरासी
मुम्बई उन्नीस सौ बानवे
गुजरात दो हज़ार दो
मुजफ़्फ़रनगर दो हज़ार तेरह
और अब फिर दिल्ली दो हज़ार बीस,
कोई छप्पन लोग मारे गए हैं अब तक
यह संख्या पिछले सभी दंगों से कम है,
किस समुदाय के ज़्यादा मरे
किस धर्म के कम
यह चर्चा चलती रहेगी,
क्या पुलिस ने अपना काम किया
क्या प्रशासन ने कोताही बरती
कौन से नेता ने भीड़ को उकसाया
किसने पहले आग लगायी
यह जाँच चलती रहेगी,
फिर एक दिन जाँच रिपोर्ट
समर्पित की जाएगी
और संसद के पटल पर
रखकर सार्वजनिक कर दी जाएगी,
फिर सब कुछ पहले की तरह हो जाएगा-
हम सुबह सात चालीस की मेट्रो से
ऑफ़िस के लिए निकलेंगे,
स्टेशन के बाहर राम प्रवेश
फ़्रूट जूस का ठेला
सुबह-सुबह लगा लेगा,
लेकिन हमारे आपके सबके
दिमाग़ का एक तंतु
हमेशा के लिए सूख गया होगा

हम सब आदमी थोड़ा कम और
जानवर थोड़ा अधिक हो गए होंगे।

क़ातिल की सफ़ाई

मुंसिफ़ ने राजा के चहेते
कोतवाल की मनमानी न मानी,
कोतवाल को उसकी ग़लती की सज़ा सुनायी गयी
राजा को ये मंज़ूर न था
फ़ौरन मुंसिफ़ का तबादला हो गया
सुबह के अख़बार की सुर्ख़ियों में छपा-
‘कोतवाल के तबादले में उसकी भी सहमति थी’

क़ातिल ने क़त्ल की सफ़ाई यह दी
कि क़त्ल से पहले
उसने उससे उसकी रज़ामंदी ली थी!