Poems: Rakhi Singh
अलिखित लिपि
पानी की लिपि में
लिखी थीं मैंने चिट्ठियाँ,
किसी शब्दकोश की मदद से
कोई उनकी लिखावट पढ़ नहीं पाएगा,
नहीं होंगी संरक्षित वो किसी पुस्तकालय में
न इतिहास के अमर प्रेमपत्रों में उनका कोई ज़िक्र होगा
वो गिरेंगी बूँद बनकर
बहेंगी नदियों की तरह
नष्ट होकर भी
वो छोड़ जाएँगी अपनी निशानियाँ…
प्रेम : एक नया जन्म
एक जन्म में होने वाला हर प्रेम
होता है एक नया जन्म
एक जन्म में हम लेते हैं
कई-कई जन्म
मेरा पिछला जन्म कुलाँचे मार रहा है
पर घुटने मज़बूत दिखते नहीं इसके
ये अपने पैरों पर खड़ा हो पायेगा
ऐसी आशा नहीं मुझे
उससे पिछला जन्म प्रिय था सबसे
परन्तु किशोर वय में
मौत का ग्रास बना
अहम खाकर आत्महत्या कर ली उसने!
वो मेरे हर पुनर्जन्म में पूर्वजन्म की स्मृतियों में रहा
कुछ जन्मों का होना व्यर्थ गया
सब मरे
कुपोषित मौत!
कितने जन्म नौनिहाल ही सिधार गए
कितने जन्मों की भ्रूण हत्या का पाप है सिर पर
प्रथम जन्म खाट पर पड़ा बुज़ुर्गवार हो चला है
कराहे भी सुनायी नहीं देतीं अब उसकी
एक जन्म में कितने जन्म जी लिए मैंने
मैं, एक नये जन्म की तैयारी में हूँ।
अपूर्णता
इन दिनों जबकि तुम्हारी याद आती है
कुछ कम
थोड़ा और कम
मैं सोचती हूँ
दो लोग जो लम्बे समय तक रह सकते थे
एक दूसरे के साथ
और एक दूसरे की यादों में
भूल भूल में
भूल जाएँगे एक दूसरे को
शीघ्र ही!
इतना प्यार था मेरे मन में तुम्हारे लिए
जो मैं लुटा सकती थी तुमपर उम्रभर
पर उन्हें ख़र्चने के अवसर मुझे कम मिले
और तुम करते रहे गुज़ारा फ़ाक़ाकशी पर।
मैंने कभी छककर प्रेम नहीं किया
न तृप्ति भर प्रेम मुझे मिला कभी
मज़दूर माँ की सूखी छाती से लिपटे शिशु की भाँति
कलटता बीता मेरे प्रेम का बचपन।
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