सूखी नदी/भरी नदी
सूखी नदी
एक व्यथा-कहानी
जब था पानी
तब था पानी!
भरी नदी
एक सीधी कहानी
ऊपर पानी, नीचे पानी।
विरोध
उसे बाँधकर ले जा रहे थे
राजा के सेनानी
और नदी
छाती पीटकर रो रही थी
लौटा दो, लौटा दो
मुझे मेरा पानी।
चेतावनी
नदी और आग से
न कीजिए नादानी
एक मारती है पानी से
दूसरी बिन पानी।
प्रार्थना
प्रभु
मेरी खाट में
कुछ खटमल पैदा कर दो
सोकर भी मैं
जगा रहना चाहता हूँ।
सूर्योदय
कई रात ख़ाली पेट सोने के बाद
सुबह
भूखे जागने वालों से पूछिए—
सूरज देवता नहीं
एक रोटी-सा लगता है।
झुके स्तन
सूखे खेत को देखकर
झुक गया मानसरोवर
बच्चे की रुलाई सुन
झुक गए उनके स्तन
वैसे, समय पर
अपनी सम्पत्ति के उभार पर
सभी को गर्व होता है अक्सर।