Poems: Rewant Dan [Selected by Rajendra Detha]

अरदास

मेरे लिए कुछ मत माँगना
मत करना अरदास मूक भगवानों के सामने
उपवास रखकर ख़ुद को कष्ट मत देना
वार-त्योहार जब भी आए मांगणियार
और करे अंजस भरी शुभराज अपने द्वार
मेरी विनती है तुमसे कि मत गवाना
मेरे नाम के केसरिया गीत
किसी बामण से मत पूछना टीपणा
और मत देखना आखा किसी देवी के मंदिर में
हाँ इतनी-सी विनती है तुमसे
कि प्रभात उठकर जब माला फेरो
या ब्रह्माण्ड के अक्षय ऊर्जा पुञ्ज को अरघ दो
तो उस निराकार को कहना कि
मेरे जोगी के पैरों में हौसला देना
वो पागल है, जुनूनी है
घर से नंगे पाँव गया है
सूथण पर कारियाँ दिए हुए
उजड़ अनवरत यात्रा के लिए
हाँ! छाया की अरदास मत करना
धूप ही धूप माँगना मेरे लिए।
साहस ही साहस माँगना मेरे लिए
धैर्य ही धैर्य माँगना मेरे लिए।
अकूत आत्मविश्वास तो तुमने
मेरे भाते में बाँधा है माँ!

सूरज को न्योता

यह वक़्त – एक ​सियाह रात​ है
रात जो ब​हुत डरावनी ​है
इस रात के स​न्‍नाटे में असहनीय है
​उल्‍लूओं और सियारों का ​शोर।
इस रात ​में जागे और सोये ​हुए
सबके ​दिलों में अँधेरा है
इस अँधेरे ​में
देखी न​हीं किसी ने ​किसी ​की ​शक्‍ल
यहाँ धुँधलका ही रो​शनी का प​र्याय है।
इस ​दु‍निया के लोग उजा​ले से अनजान ​हैं
इस ​दुनिया के लोग सच से अनजान ​हैं
इस दुनिया ​में रोशनी​ का ज़िक्र भी न​हीं हुआ
ओ सूरज! तुमको इस ​वक़्त का ​न्‍योता ​है
अब आना पड़ेगा यहाँ
ता​कि इस ​दुनिया के बाशिंदे जान स​कें
​कि उजा​लों का सच ​कितना असीम होता ​है।

समय का सच

सच का जयघोष करती हुई जीभ पर
सिंदूर लगाने वाले सोचते हैं कि
अब सुनाई नहीं देता कभी-
‘संसार का सच’

जलती हुई मशालों को
आसमान में लहराती हुई बंद मुट्ठियों को
कालकोठरी में बंद करने वाले
यह सोचते हैं कि क़ायम रहेगा अँधेरा
और चलता रहेगा उनका झूठ का कारोबार

समय के सच को और सच के सूरज को
कितनी ही परतों में दबा लो
वह ज्वालामुखी की तरह निकलता है
हरेक सच की एक सुबह तय होती है।

इंक़लाब

वे सर्वथा अपाहिज कवि थे
और उनकी क़लमें भी विकलांग थीं
सिंहासनों के पाये जिनकी बैसाखियाँ थे
जिन्होंने ज़ालिम हुकूमत के गीत गाये
जिन्होंने ज़ुल्म की सरपरस्ती की
और तख़्त के सितम को मशहूर किया
जिनके लिखे हुए क़सीदों वाले इतिहास को
आज हम सच मानकर पढ़ते आए हैं।
जो क़ौम के कवि थे, निपट अकेले थे
अपना घर फूँककर चले थे
धरती बिछाकर आसमान ओढ़कर पले थे
वे अपनी राह में ख़ुद चिराग़ बनकर जले थे।
क़ौम के हर कवि की क़लम
अमन के गीत लिखने से पहले
ज़ुल्म के खिलाफ़ इक़बाल लिखती है।
वक़्त की मुराद बनकर कवि की क़लम बोलती हैं
इंक़लाब की बोली किसी पाठशाला में नहीं सिखायी जाती।

तुम्हारे पास

मुझे हर रूप में तुम्हारे पास आना है
पानी बन गया तो भाप बनूँगा
फिर संघनित होकर बादल बनूँगा
हवा के संग तैरकर सफ़र करूँगा
जहाँ तुम बसते हो
वहाँ ख़ुद को बिखेर दूँगा क़तरा क़तरा
तुम्हारे पाँवों को प्रक्षालित करके
महावर बन महकूँगा।
हवा बना तो झोंका बनकर
इर्द-गिर्द ही रहूँगा
उलझी हुई तुम्हारी केश राशि को सँवारूँगा
कर्णफूल के घुँघरूओं में संगीत बन गुँजा करूँगा

सुनो मेरे अभिन्न
अगर मिट्टी बनना ही मेरी नियति है
जिससे सब बने हैं, जिसमें सबको मिलना हैं
तो अनंतकाल तक मैं प्रतीक्षा करूँगा
तुम्हें मुझ में और मुझे तुम में खो जाना है
मुझे हर रूप में तुम्हारे पास आना है।

कवि प्रभात की कविताएँ

Books by Rewant Dan:

रेवन्त दान
जन्म- 15 जून 1982, गाँव पोस्ट- भींयाड़, ज़िला- बाड़मेर (राजस्थान) | शिक्षा- एम. फिल. (तुलनात्मक साहित्य), पी.एच.डी (समकालीन हिन्दी और उर्दू ग़ज़ल का तुलनात्मक अध्धयन) | सम्प्रति- आकाशवाणी जयपुर में समाचार वाचन और स्वतंत्र लेखन | सम्पर्क- [email protected]