Poems: Riya Gupta
प्रेम रहित विवाह
तुम ने प्रेम के स्थान पर
दहेज की नींव बनायी,
खड़ी की औपचारिकताओं
की दीवारें,
अलग-अलग स्वाद पाने को
बना लिए आवश्यकताओं के कमरे
तुमने प्रेम रहित विवाह
सिर्फ़ इसलिए भी निभाए
कि बना रहे तुम्हारे
तन का सुख
एवं मिलता रहे
मन को झूठा आश्वासन
ताकि तुम क़ीमत वसूल कर सको
उस खोखली नींव की
जिस पर तुमने विवाह के नाम पर
व्यापार की इमारत खड़ी की।
जीवन
स्वप्न बुनने की उम्र में
मैंने बुना उधड़ा हुआ जीवन
अब मुझे नहीं भाते रेशम के पर्दे
मैं खोजती हूँ कपास की पट्टियाँ।
पीठ
जिस क्षण उखड़ेगी मुझ में बसे प्रेम की
अन्तिम साँस
तुम थपथपाना अपनी पीठ
कि तुमने हराया संसार के सबसे
शक्तिशाली भाव को।
तुम्हारी पीठ प्रमाण बनेगी
छिले हुए उन घुटनों की
जो रेंगते रहे तुम्हारे पीछे,
फफोले पड़ चुकी उन उँगलियों की
जो लिखती रहीं तुम्हें बिन पते के प्रेम पत्र,
और मौन पड़ चुकी उन आँखों की
जो निहारती रही एकटक तुम्हारी उसी पीठ को
जिसने प्रेम के समक्ष सदैव पीठ ही की
और फेर लिया मुँह।