मैना
निष्ठुर दिनों में देखा है
कोई नहीं आता।
मैना की ही बात करता हूँ
कई मौसमों के बीत जाने पर आयी है
मैं तो बच गया—
विस्मृत हो रही थीं
तोता और मैना की कहानियाँ।
घर स्थिर है ज़ंग लगी साइकिल की तरह
कोई था जो अब नहीं रहा
कोई है जो अपनी दिव्यता का शिकार हुआ
मारा गया कोई अपनी चुप्पी में
कोई अतीत की चिड़ियों के पीछे भागा
एक घर है जो रहा स्थिर
ज़ंग लगी साइकिल की तरह।
घर
घर लौटना हो नहीं सका
किसके स्वप्न में नहीं आता घर
कौन घर नहीं लौटता
कितना अच्छा था हमारा घर
पर हम लौट नहीं सके
चलते हुए ठेस किसे नहीं लगती
पर हम तो मर गए।
बुद्ध
घर से बाहर निकलता हूँ
घड़ी देखता हूँ
नहीं
समय देखता हूँ
सोचता हूँ— कितना पहर बीत गया
बदहवास-सा लौटता हूँ घर
बच्चों की तरह पूरे घर में दौड़ लगाता हूँ
मैं चाहता हूँ— कोई घर छोड़कर नहीं जाए।
मिलना
उसके शरीर में
ख़ून की जगह आँसू थे
उससे जब भी मिला
महसूस की
आषाढ़ के मौसम की नमी
अपने आस-पास।