चिड़िया होना पहली शर्त होगी
उन सभी चीज़ों को
मेरे सामने से हटा दो
जिनमें मैं किसी और के जैसा दिखता हूँ
मैं किसी की तरह दिखना नहीं चाहता
और अपनी तरह तो बिल्कुल भी नहीं
लेकिन कोई आँगन में झूलता
आईना भी हटा दे
यह मैं कैसे बरदाश्त करूँ?
उसमें एक चिड़िया
जब ख़ुद को निहारती है
तो चहचहा उठती है
क्या अब ऐसे ही दिन आएँगे
और मुँह बिराकर चले जाएँगे
जिनमें ख़ुद ही को देखकर चहचहाने के लिए
चिड़िया होना पहली शर्त होगी।
जब देह नहीं रहेगी अंत में
“जो कहता था दुनिया के पीछे मत भागो
वही लगता था दुनिया से भागा हुआ”
जब जीवन रहा तो दुःख भी रहा
किंतु इच्छा रही तो जीवन रहा
और जब कोई इच्छा नहीं रही
तब उसने ऐच्छिक जीवन बिताया
जो नादान था
वह पहुँचाता रहा ख़ुद को नुक़सान
जिसने पाल रखी थी ग़लतफ़हमी
होने की और पीड़ा में न होने की
जब बातें हुईं तो होती रहीं
कोई चुप रहा कोई बोला
पर जितना बन पाया उतनी मदद की उसने अपनी
वह क्या करे जो उससे नहीं होता ऐतबार?
वह कहाँ जाए, किससे पूछे
जब देह नहीं रहेगी अंत में
वह आत्मा क्यों बचाए?
एक यात्रा यह भी
आऊँगा होकर पानी की नाव पर सवार
बादल रोकेंगे मेरा रास्ता
अंधेरा भी ताक़तवरों से जा मिलेगा
हमेशा मिलता आया है
पाल में लग जाएगी आग
नाव में छेद होने की बात का पता चलेगा
समुंदर किनारे बसे
बालू के हमारे घर बाट जोहेंगे
और बच्चे, जिनसे रंग-बिरंगी सीपियों का वादा है
हमारी लेट-लतीफ़ी से तंग आकर
घर का घर सिर पर उठा लेंगे
बिजली अंधेरे के टुकड़े-टुकड़े कर देगी
लहरें हमें सुनसान टापू पर दे मारेंगी
फिर भी तूफ़ानों पर लहराएगा
हमारे प्यार का झण्डा।
वह
उसका आना अनियमित हो चुका है
वह भी औपचारिक हो रही है
मैं उसे झील भी कहूँ तो वह आख़िरकार नदी है
वापसी की टिकट उसकी हाथों में
अब वह हवा है
रेलगाड़ी में पानी भरा जा रहा है
यह मेरा चेहरा है इसे ध्यान से देखो
जहाँ कुछ नहीं है हवा है और एक-आधा निशान
वह पानी उठा रही है धरती से
यह उसकी अनुपस्थिति है
जो उसकी उपस्थिति को और दुःसह बना रही है।
'ठिठुरते लैम्प पोस्ट' से अदनान कफ़ील दरवेश की कविताएँ