नन्हे हाथ

उसने कहा, “रोटी मैं बनाऊँगी।”
मैंने उसे बेलन-चकला थमा दिया।

उसके नन्हे हाथ रोटी बेलने लगे,
और
इसके साथ ही एक नयी दुनिया का निर्माण होने लगा।

नयी दुनिया छोटी थी,
असमान थी,
लेकिन
सुन्दर थी,
गर्म थी।

साँझ

मैं खिंचा चला जाता हूँ
जहाँ होते हैं
पहाड़,
जंगल,
बहती धारा,
या
डूबता सूरज।
सबसे नज़दीक यदि कोई है
तो वह है डूबता हुआ सूरज।
उसे देखने के लिए मुझे नहीं जाना पड़ता है दूर
पहाड़ों पर,
जंगलों के बीच
या
धाराओं के किनारे।
डूबता सूरज दीख जाता है,
घर की छत से
या
मन के भीतर।

शुभम् आमेटा
उदयपुर में जन्म। जयपुर से रंगमंच की शुरुआत। अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन से थिएटर इन एजुकेशन में पढ़ाई। थोड़ा बहुत टीवी-सिनेमा बतौर अभिनेता भी काम। इसके अलावा लेखन में रुचि। बतौर डाक्यूमेंट्री रिसर्चर-राइटर एक्टिव। हाल ही में, राजकमल प्रकाशन के लॉकडाउन सिरीज़ में एक कहानी प्रकाशित।