अनुवाद: पंखुरी सिन्हा
युद्ध के बाद ज़िन्दगी
कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं
बग़ीचे की झाड़ियाँ
हिलाती हैं अपनी दाढ़ियाँ
बहस करते दार्शनिकों की तरह
जबकि पैशन फ़्रूट की नारंगी
मुठ्ठियाँ जा छिपती हैं
पत्तों में!
आसमान में कसकता है
बिना मापी दूरियों का दुख
और कुछ भी नहीं छिपाता है
सूरज!
और शाम ढले, समर्पण कर देता है
चाँद के आगे!
गली में जब उठता है
छोटी-मोटी बातों का
दबा-दबा शोर
याद रखना, वह है कोई
केवल यह तय करता हुआ
कि घर जाए या कहीं और?
रात से करता और अपेक्षाएँ
उसकी गहरी परतों में तलाश
करने को आतुर, आख़िरी
महान मस्तियों के लम्हे
खींचता रात को आगे
एक हतप्रस, अवाक सुबह के!
कम से कम, कॉफ़ी उपलब्ध है
एक बार और पीने के लिए!
कॉफ़ी ले जाती है हमारा ध्यान दूर
रेडियो से, नर्म आवाज़ में कहे उसके आश्वासनों से, रूपक सजे दिखते हैं
परजीवी जंतुओं से, हर घोषणा पर,
और उछल जाते हैं लोग
दरवाज़े के नीचे से पैम्फ़लेट सरकाये
जाने की आवाज़ पर!
कुछ बातें कभी नहीं बदलतीं!
लोगों ने पहन रखी है ख़ामोशी
गर्भस्थ शिशु के चारों ओर के
आवरण-सी! ताकि डूबने से बचने का शुभ संयोग बना रहे साथ!
वे माता-पिता थे, या भाई-बहन, या दोनों!
ये वो लोग हैं जिन्हें किसी चीज़ से आश्चर्य नहीं होता
वो लोग, जो अब कभी ऊपर नहीं देखते, जब अचानक एक लड़ाकू विमान चीख़ता गुर्राता हुआ
प्रकट हो जाता है शहर के ऊपर
नारंगी आसमान की पृष्ठभूमि में
उँची इमारतों के बीच अपनी राह
चुनता बनाता!
नारसिसस
मुझे थोड़ा और बताओ
अपनी योजनाओं के बारे में
तुम्हारी पसंद, तुम्हारे चुनावों
तुम्हारी ज़िन्दगी के बारे में!
मैं तुम्हें ठीक तरह जानता नहीं
और समय बहुत कम है
मिनट-भर के भीतर
मुझे उतरना पड़ेगा, इस ट्रेन से
और फिर हम कभी नहीं मिलेंगे!
कल्पना करो, उस ग़लती की
जिसे हम हो जाने दे सकते हैं!
क्या तुम नहीं हो शामिल
इस खोज में कि
हमारे बीच एक जैसी
या साझे की कम से कम
एक बात क्या हो सकती है?
यह केवल मेरे और तुम्हारे बीच है
कि मैंने तय किया है कि इसी सीट में
रहूँगा, क्योंकि मैंने महसूसा है कि
तुम्हारी बात करने की मंशा है!
मैं अपने उतरने की तय जगह भी
छोड़ दूँगा, लेकिन वह महत्त्वपूर्ण नहीं है!
महत्त्वपूर्ण है एक-दूसरे को समझना!
मुझे कैसे यक़ीन होगा
कि नहीं आएगा तुम्हारा जवाब?
सबसे ज़्यादा शोर
मैं हमेशा चौकन्ना होकर
पंजों के बल खड़ा
लिखता हूँ, और दूसरी तरह
कैसे लिखूँ?
मिठास से भरी हुई है तुम्हारी साँस!
तुम्हें उसे छोड़ना चाहिए ज़रा आराम से!
तुम्हारी चुप्पी मचाती है सबसे ज़्यादा शोर!
उससे घिरा हुआ
मैं सुन नहीं पाता हूँ उन शब्दों को
जो बनते हैं खुली हवा में!
पोलिश कवयित्री यूस्टीना बारगिल्स्का की कविताएँ