कविताएँ: यशस्वी पाठक
एक
कवि और लेखकों की शामें दोस्तों के साथ या सड़कों पर गश्त लगाते गुज़रती हैं
जहाँ गर्भ धारण करते हैं उनके मस्तिष्क
जिससे जन्म लेती है कविता, कहानी या उपन्यास
उनके पास होते हैं टॉल्सटॉय, गोर्की, मुक्तिबोध, सहाय, मीर और ग़ालिब के संग्रह
दुनिया के बवालों से ऊबकर सिर टिकाने को
तलाश करने को नये उस्लूब
देखने को नया नज़रिया
सोचने को नये विचार
जहाँ मिलती है राह ज़ंग खायी समाजी मान्यताओं से मुक्ति की!
जहाँ बिछौने का इंतिज़ाम हो, वहाँ गुज़रती है रात उनकी।
इसी समाज में एक वर्ग लड़कियों का है
सम्भवतः किसी लड़की को बनना हो लेखिका?
यदि वह सोच सके तो…
क्या वह सोच सकती है?
जिसकी सुबह शुरू होती झाड़ू-पोंछे से
सब्ज़ी छौंकते या आटा गूँथते क्या उसे ख़याल आ सकता है
कि हिन्दी साहित्य की लेखिकाओं ने क्या लिखा है?
काफ़्का के दुःख क्या हैं?
क्या लिखा गया है उसकी अपनी बोली में?
स्टुअर्ट मिल ने क्या कहा है नारीवाद विषय पर?
अज्ञेय और अरुण कमल की कविताएँ कैसी हैं?
एलिस मुनरो और डोरिस लेसिंग कौन हैं?
क्यों सोचती हैं ज़ाहिदा हिना के उर्दू शायरी ने किया है औरतों का बड़ा नुक़सान?
क्या वह सोच सकती है?
कितना जानती होगी वह अपने बारे में?
अपने समाज के बारे में?
बदनामी के डर से नहीं कर सकती स्वीकार कि मोहब्बत है उसे भी;
उसे क्या ग़रज़ कि किसने कहा है— ‘इश्क़ तौफ़ीक़ है, गुनाह नहीं’?
जिसका दिन गुज़रता है बी.एड. की फ़ाइल बनाने में
जिसने कभी नहीं देखी अपने ही शहर की मुख़्तलिफ़ राहें
जो कपड़े तक नहीं पहन सकती अपनी इच्छा से
सूरज के ग़ुरूब होते ही जिसका दहलीज़ पार करना हो वर्जित
‘बड़ों’ की सड़ी-गली बातों को स्वीकार करना ही जिसका धर्म हो
क्या वह रात रसोई में रोटियाँ सेंकते सोच सकती है कि उसकी ज़िन्दगी सिर्फ़ उसकी है, वह जो चाहे कर सकती है?
भाई-बाप के आगे सजी थाली परोसते क्या वह नहीं सोच सकती…
कि इनके लिए सारी राहें खुली क्यों?
घर के दरवाज़े रात गये तक खुले क्यों?
इनके प्रेम प्रसंगों पर चुप्पी क्यों?
क्या आ सकता है उसके प्रोग्राम किये दिमाग़ में कोई नया विचार?
क्या होते होंगे उसके पास पैसे कि वह ख़रीद सके चन्द अच्छी किताबें?
क्या वह पहचान पाती होगी अपने साथ होने वाली ज़बरदस्तियों और तास्सुबात को?
क्या वह करती होगी विरोध अपनों से?
नहीं करती तो उसे करना चाहिए
ख़ुद को खुला छोड़ना चाहिए सोचने को कुछ भी
उसे पढ़ना चाहिए बहुत-सी किताबें
बोलना और लिखना चाहिए बहुत-सी बातें
बड़ों की दकियानूसी बातों को सिरे से करना चाहिए ख़ारिज
भटकने का डर भूलकर उसे चलना चाहिए उन रास्तों पर जिस पर कभी नहीं गई
उसे मोहब्बत करनी चाहिए और जीना चाहिए
वह सब कुछ कर सकती है!
दो
तुम्हारे नाम के साथ अपना नाम लिखा है
चाहती हूँ ये हर्फ़
धरती का हमल बन जाएँ
सूरज की किरणों में जज़्ब हो जाएँ
चाँदनी में घुल जाएँ
हवाओं का पैरहन
बादलों का जिस्म बन जाएँ
चाहती हूँ कि मैं और तुम
अज़ल अबद का वस्ल बन जाएँ
तुम्हारे नाम का नुक़्ता वक़्त की पाज़ेब पहन ले
और मेरे नाम की मात्रा बक़ा की चूड़ियाँ खनकाती
क़यामत के रोज़ तक हर्फ़ की सूरत ज़िन्दा रहे…
तीन
लिखना बेईमानी है
चीख़ना ईमानदारी
झूठ है कि मोहब्बत का जज़्बा बासी भी होता है
सच्चाई है कि जिस्म की आँच पर उसे ताज़ा किया जा सकता है
दिमाग़ को क़ाबू में रखना
ख़ुदा या इंसान होने से बड़ा काम है!
चार
पलकों की ओट में चमकते
भूरे सैय्यारों की इक दुनिया है
उस रोज़ जब इस दुनिया यानि जहन्नम की मज़हबी चीलें
इंसानियत को नोच खाएँगी
नफ़रत, मक्कारी, और हक़मारी
जायज़ करार दिए जाएँगे
सियासी आदमख़ोर
बच्चों की मासूमियत को अपना निवाला बनाएँगे
गलती-सड़ती लाशों पर
कोई मातम करने को न बचेगा
मोहब्बत, दयानत और इंसानियत
इस जहन्नम की तमाम बुराइयों को ख़त्म करने की नाकाम कोशिशें कर चुके होंगे
तब जिस्म से निकलती रूह की मानिंद
मोहब्बत अपना सारा वजूद समेट चल देगी
भूरे सैय्यारों की इस दुनिया की ओर
जन्नत और जहन्नम से मावरा
इस दुनिया में जहाँ मोहब्बत का मस्कन है
इंसानियत का मज़हब वजूद में आएगा
दयानत का निज़ाम कायम होगा
‘कुन’ की क़ैद से फ़राग़त हासिल होगी
तब ख़ुदा का वो काम जो अधूरा रह गया है
उसे मोहब्बत पूरा करेगी!
पाँच
धर्म का वास्तविक मर्म वे समझते हैं
जो अपने धर्म से भिन्न किसी अन्य धर्म के मनुष्य से प्रेम करते हैं
जाति का वास्तविक अर्थ वे समझते हैं
जो अपनी जाति से तथाकथित नीची जाति के मनुष्य से प्रेम करते हैं
लिंग का वास्तविक पर्याय वे समझते हैं जो समलैंगिक प्रेम करते हैं
किसी हिन्दू-मुस्लिम जोड़े
किसी अंतर्जातीय जोड़े
किसी समलैंगिक जोड़े से पूछो
धर्म, जाति, लिंग क्या है?
उनका जवाब तुम्हें मनुष्य बनाएगा
सही अर्थों में।
छः
बुद्ध ने बताए निर्वाण के मार्ग—
अहिंसा
सत्य
अस्तेय
व्यभिचार, मद्य-सेवन, असमय भोजन न करना
सुखप्रद बिस्तर पर न सोना
धन संचय न करना
और
‘स्त्रियों का संसर्ग न करना’
बुद्ध ने ‘पुरुषों का संसर्ग न करना’ क्यों न कहा?
क्या बुद्ध ने निर्वाण सिर्फ़ पुरुषों के लिए चाहा है?
जबकि ‘मनुष्य’ के जीवन का चरम लक्ष्य है निर्वाण की प्राप्ति…
तो औरतें निर्वाण कैसे प्राप्त करेंगी?
तो औरतों को मोक्ष कैसे मिलेगा?
यदि जन्नत में पुरुषों के लिए हूरे हैं
तो स्त्रियों के लिए पुरुष क्यों नहीं?
क्या स्त्रियाँ जन्नत नहीं जाएँगी?
दस सिख गुरुओं में एक भी स्त्री क्यों न हुई?
वैदिक धर्म का केंद्र रहे ब्रह्मा, विष्णु, महेश
जैन धर्म की शुरुआत की महावीर ने
ईसाई धर्म टिका है ईसा मसीह के कंधों पर
इस्लाम को रूप दिया मोहम्मद ने
सिख के प्रेरणता रहे गुरुनानक
मानव जीवन की शुरुआत से अब तक
स्त्रियों ने कोई कृत्रिम धर्म क्यों न बनाया?
शायद इसलिए कि उसके पास अपना सबसे प्राकृतिक
‘मासिक धर्म’ था—
जो सिर्फ़ जीवन देना जानता है!
उससे अधिक और कुछ नहीं!
सात
आहिस्ता से
उतना जितने ये मौसम हैं
मद्धिम मद्धिम
थोड़ा थोड़ा
धीरे धीरे
जैसे
धीरे धीरे सर्द होती हैं हवाएँ
धीरे धीरे गर्म होती है पृथ्वी
धीरे धीरे होती है बारिश
धीरे धीरे खिलते हैं फूल
बदलेंगे हम
आहिस्ता से
मद्धिम मद्धिम
थोड़ा थोड़ा
धीरे धीरे
हर बदलाव होगा
मौसमों जितना ख़ूबसूरत
और हमारी ज़िन्दगी का आख़िरी मौसम
हमें सदा के लिए बनाएगा अपने वजूद का हिस्सा
धीरे धीरे हम मिट्टी होंगे
धीरे धीरे पृथ्वी गर्म होगी
धीरे धीरे हम तपेंगे
धीरे धीरे बारिश होगी
धीरे धीरे हम भीगेंगे
धीरे धीरे बीज बनेगा
धीरे धीरे एक पौधा उगेगा
हरी पत्तियाँ मैं
सुफ़ैद फूल तुम
मौसम बदलता रहेगा
हम भी बदलते रहेंगे
मौसम हमारे साथ रहेगा
हम हर मौसम में साथ रहेंगे।
आठ
बड़ी-बड़ी दलीलों के सहारे
बहस की फिसलन भरी ज़मीन से गुज़रकर
एक रास्ता
जो तुम्हें मुझ तक
और मुझे तुम तक पहुँचाता है
वही प्रेम है
ज़मीन काई से कितनी ही भर जाए
फिसलन कितनी ही बढ़ जाए
तुम्हें मालूम है न
कि एक रास्ता है
और हमेशा रहेगा—
जो तुम्हें मुझ तक और मुझे तुम तक पहुँचाता रहेगा
मैं और तुम बहस करते रहेंगे
मैं और तुम मिलते रहेंगे।
स्त्री-विमर्श की अन्य रचनाएँ यहाँ पढ़ें!