Poems: Yogesh Dhyani
क्रमशः
पृथ्वी पर रह रहा
हर जीव
मृत्यु शय्या पर लेटने से पूर्व
चुपचाप हवा के कान में
फूँक देता है
कड़ियों में प्रस्तुत हो रहे
किसी वृहद उपन्यास की
हर कड़ी के अन्त में लिखा
‘क्रमशः’
और कहानी अन्त होने की जगह
निरन्तर हो जाती है
पृथ्वी समय की सीमओं या फिर
उससे भी परे जी जा चुकी और जी जा रही
एक ऐसी महागाथा है
जिसकी किस कड़ी के अन्त में
नहीं लिखा होगा ‘क्रमशः’
यह कोई नहीं जानता,
हम नहीं जानते कुछ भी ठोस
इस महागाथा के बारे में
इसके आदि या अन्त के बारे में
यहाँ तक कि इतना भी नहीं
कि फ़िलहाल, अभी इस समय
इस महागाथा के कौन से हिस्से में हैं हम
पूर्वाह्न या अपराह्न।
नाख़ून
छुट्टी के समय
भीतर कक्षा में टीचर
जब बच्चों से कह रही थी
कि नियमित काटे जाने चाहिए नाख़ून
तो बेटी को लेने गया मैं
बाहर खड़ा देखने लगा
अपने दाएँ पैर के
कई रोज़ के नहीं काटे
कठोर पड़ गये नाख़ून को
जो नींद में अक्सर नोच लेता था
मेरे बाएँ पैर को
मेरी अनुमति के बग़ैर।
निस्तारण
एक लम्बित मामले के निस्तारण की माँग
जब सिर उठाने लगी
तो न्याय समिति ने
एक गुमनाम, गूँगे व्यक्ति की खोज की
और आरोपी बनाकर उसे
सभा में पेश किया।
बड़ा काम नहीं था
आरोपी के विरुद्ध
ढेरों वाचाल गवाहों को जुगाड़ लेना।
अविश्सनीय तेज़ी से हुई
मामले की सुनवाई
और अन्ततः
कठोर कारावास का दण्ड देकर
शीघ्र निस्तारित किया
मामले को सभापति ने।
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